Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Darbarilal Nyayatirth
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 7
________________ ॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥ राय धनपतसिंघ बदाउरका जैनागमसंग्रह. नाग तेतालीसमा. ॥ अथ ॥ श्रीदशवैकालिकम् गुर्जरजाषासहितम् श्रवचूरिसंवलितं समयसुन्दरोपाध्यायकृतदीपिकासनार्थ श्रीहरिजऽसूरिकृतबृहकृत्तिविराजितं च प्रारभ्यते । धम्मो मंगलमुक्कि, अहिंसा संजमो तवो ॥ देवा वितं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥१॥ ॥ अथ श्रीदशवकालिक सूत्रनो बालावबोधप्रारंन ॥ (तेमां प्रथम मङ्गलाचरण.) ॥ सर्वान्तरायशमनं, सर्वमङ्गलदायकम् ॥ ॥ सर्वजीवावनकर, सर्वज्ञं नौमि बोधये ॥१॥ जेम कल्पवृक्ष उपरथी पडेला पुष्पोने एकत्र करीने देवताठ तेमनी, माला गूंथे बे, तेम कल्पवृद सरखा तीर्थंकरोना मुखथकी प्रकट थयेला, पुष्प सरखां शुरू, प्रमादादिदोषरहित एवां अर्थरूप वचनोने श्रवण करीने गणधरो तेमनां सूत्रो रचे . श्रा वात जैन आम्नायमां सुप्रसिद्ध . ते मांहेदुं दशवैकालिक सूत्र पण श्री सिऊजवाचार्ये नव्य जीवोना शारीरक तथा मानसिक दुःख मूकाववाने माटे तथा पोताना पुत्र मनकने प्रतिबोधवाने अर्थे रच्यु जे. एर्नु उपर कहेलु नाम पाडवानुं कारण ए डे के, दश विकालें कडं, माटें ए सूत्रने दशवकालिक एवे नामें कहे , हवे तेमां प्रथम सिऊंनवाचार्य श्रजीष्ट स्मरणरूप मंगल एक गाथायें करी कहे . वली ते मांगलिक जे बे, ते अन्यत्र पांच प्रकारनां कह्यां . तेमां प्रथम पुत्रादि जन्मरूप, ते शुझ मांगलिक, बीजुं गृहादिरचनारूप ते अशुद्ध मांगलिक, त्रीजुं विवाहमहोत्सवप्रमुख ते चमत्कारमांगलिक, चोथु धनादिक ते दीमांगलिक अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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