Book Title: Agam 42 Dashvaikalik Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 17
________________ आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक जाए तो, स्तनपान कराती हुई महिला यदि बालक को रोता छोड़ कर भक्त-पान लाए तो वह भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है । अतः उसे निषेध करे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है। सूत्र - ११९ जिस भक्त-पान के कल्पनीय या अकल्पनीय होने में शंका हो, उसे देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि मेरे लिए यह आहार कल्पनीय नहीं है। सूत्र - १२०-१२१ पानी के घड़े, पत्थर की चक्की, पीठ, शिलापुर, मिट्टी आदि के लेप, लाख आदि श्लेषद्रव्यों या किसी अन्य द्रव्य से-पिहित बर्तन का श्रमण के लिए मुंह खोल कर आहार देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि मेरे लिए यह आहार ग्रहण करने योग्य नहीं है। सूत्र - १२२-१२९ यदि मुनि यह जान जाए या सुन ले कि यह अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य दानार्थ, पुण्यार्थ, वनीपकों के लिए या श्रमणों के निमित्त बनाया गया है तो वह भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है । (इसलिए) भिक्षु उस को निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्राह्य नहीं है। सूत्र - १३०-१३१ साधु या साध्वी औद्देशिक, क्रीतकृत, पूतिकर्म, आहृत, अध्यवतर, प्रामित्य और मिश्रजात, आहार न ले । पूर्वोक्त आहारादि के विषय में शंका होने पर उस का उद्गम पूछे कि यह किसके लिए किसने बनाया है ? फिर निःशंकित और शुद्ध जान कर आहार ग्रहण करे । सूत्र - १३२-१३७ __ यदि अशन, पानक, खाद्य और स्वाद्य, पुष्पों से और हरित दूर्वादिकों से उन्मिश्र हो, सचित्त पानी पर, अथवा उत्तिंग और पनक पर निक्षिप्त हो, अग्नि पर निक्षिप्त या स्पर्शीत हो दे, तो वह भक्त-पान संयतों के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है। सूत्र - १३८-१३९ चूले में से इंधन निकालकर अग्नि प्रज्वलित करके या तेज करके या अग्नि को ठंडा करके, अन्न का उभार देखकर उसमें से कुछ कम करके या जल डालके या अग्नि से नीचे उतारकर देखें तो वह भोजनपान संयमी के लिए अकलप्य है । तब भिक्षु कहता है कि यह भिक्षा मुझे कल्प्य नहीं है। सूत्र - १४०-१४१ कभी काठ, शिला या ईंट संक्रमण के लिए रखे हों और वे चलाचल हों, तो सर्वेन्द्रिय-समाहित भिक्षु उन पर से होकर न जाए । इसी प्रकार प्रकाशरहित और पोले मार्ग से भी न जाए। भगवान् ने उसमें असंयम देखा है। सूत्र - १४२-१४४ यदि आहारदात्री श्रमण के लिए निसैनी, फलक, या पीठ को ऊंचा करके मंच, कीलक अथवा प्रासाद पर चढ़े और वहाँ से भक्त-पान लाए तो उसे ग्रहण न करे; क्योंकि निसैनी आदि द्वारा चढ़ती हुई वह गिर सकती है, उसके हाथ-पैर टूट सकते हैं । पृथ्वी के तथा पृथ्वी के आश्रित त्रस जीवों की हिंसा हो सकती है । अतः ऐसे महादोषों को जान कर संयमी महर्षि मालापहृत भिक्षा नहीं ग्रहण करते । सूत्र - १४५ (साधु-साध्वी) अपक्व कन्द, मूल, प्रलम्ब, छिला हुआ पत्ती का शाक, घीया आदि अदरक ग्रहण न करे । मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 17

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