Book Title: Agam 42 Dashvaikalik Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक पड़ता है । तीर्थंकर देव विभूषा में संलग्न चित्त को कर्मबन्ध का हेतु मानते हैं । ऐसा चित्त सावद्य-बहुल है । यह षट् काय के त्राता के द्वारा आसेवित नहीं है। सूत्र - २९२
व्यामोह-रहित तत्त्वदर्शी तथा तप, संयम और आर्जव गुण में रत रहने वाले वे साधु अपने शरीर को क्षीण कर देते हैं । वे पूर्वकृत पापों का क्षय कर डालते हैं और नये पाप नहीं करते । सूत्र - २९३
सदा उपशान्त, ममत्व-रहित, अकिंचन अपनी अध्यात्म-विद्या के अनुगामी तथा जगत् के जीवों के त्राता और यशस्वी हैं, शरदऋतु के निर्मल चन्द्रमा के समान सर्वथा विमल साधु सिद्धि को अथवा सौधर्मावतंसक आदि विमानों को प्राप्त करते हैं। - ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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