Book Title: Agam 42 Dashvaikalik Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 46
________________ आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक चूलिका-२-विविक्तचर्या सूत्र - ५२५ मैं उस चूलिका को कहूँगा, जो श्रुत है, केवली-भाषित है, जिसे सुन कर पुण्यशाली जीवों की धर्म में मति उत्पन्न होती है। सूत्र - ५२६-५२८ (नदी के जलप्रवाह में गिर कर समुद्र की ओर बहते हुए काष्ठ के समान) बहुत-से लोग अनुस्रोत संसारसमुद्र की ओर प्रस्थान कर रहे हैं, किन्तु जो मुक्त होना चाहता है, जिसे प्रतिस्रोत होकर संयम के प्रवाह में गति करने का लक्ष्य प्राप्त है, उसे अपनी आत्मा को प्रतिस्रोत की ओर ले जाना चाहिए। अनुस्रोत संसार है और प्रतिस्रोत उसका उत्तार है । साधारण संसारीजन को अनुस्रोत चलनेमें सुख की अनुभूति होती है, किन्तु सुविहित साधुओंके लिए आश्रव प्रतिस्रोत होता है । इसलिए आचार (-पालन) में पराक्रम करके तथा संवरमें प्रचुर समाधियुक्त होकर, साधु को अपनी चर्या, गुणों-नियमों की ओर दृष्टिपात करना चाहिए। सूत्र - ५२९ अनियतवास, समुदान-चर्या, अज्ञातकुलों से भिक्षा-ग्रहण, एकान्त स्थान में निवास, अल्प-उपधि और कलह-विवर्जन; यह विहारचर्या ऋषियों के लिए प्रशस्त है। सूत्र - ५३० आकीर्ण और अवमान नामक भोज का विवर्जन एवं प्रायः दृष्टस्थान से लाए हुए भक्त-पान का ग्रहण, (ऋषियों के लिए प्रशस्त है।) भिक्षु संसृष्टकल्प से ही भिक्षाचर्या करें। सूत्र - ५३१ साधु मद्य और मांस का अभोजी हो, अमत्सरी हो, बार-बार विषयों को सेवन न करनेवाला हो, बार-बार कायोत्सर्ग करनेवाला और स्वाध्याय के योगो में प्रयत्नशील हो। सूत्र - ५३२ यह शयन, आसन, शय्या, निषद्या तथा भक्त-पान आदि जब मैं लौट कर आऊं, तब मुझे ही देना ऐसी प्रतिज्ञा न दिलाए । किसी ग्राम, नगर, कुल, देश पर या किसी भी स्थान पर ममत्वभाव न करे। सूत्र - ५३३ मुनि गृहस्थ का वैयावृत्त्य न करे । गृहस्थ का अभिवादन, वन्दन और पूजन भी न करे । मुनि संक्लेशरहित साधुओं के साथ रहे, जिससे गुणों की हानि न हो। सूत्र - ५३४ कदाचित् गुणों में अधिक अथवा गुणों में समान निपुण सहायक साधु न मिले तो पापकर्मों को वर्जित करता हुआ, कामभोगों में अनासक्त रहकर अकेला ही विहार करे। सूत्र -५३५ वर्षाकाल में चार मास और अन्य ऋतुओं में एक मास रहने का उत्कृष्ट प्रमाण है । वहीं दूसरे वर्ष नहीं रहना चाहिए । सूत्र का अर्थ जिस प्रकार आज्ञा दे, भिक्षु उसी प्रकार सूत्र के मार्ग से चले। सूत्र - ५३६-५३७ जो साधु रात्रि के प्रथम प्रहर और पिछले प्रहर में अपनी आत्मा का अपनी आत्मा द्वारा सम्प्रेक्षण करता है मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 46

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