Book Title: Agam 42 Dashvaikalik Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक बहुत अच्छा निष्पन्न हुआ है; (यह कन्या) अतीव सुन्दर है; इस प्रकार के सावध वचनों का मुनि प्रयोग न करे । (प्रयोजनवश कभी बोलना पड़े तो) 'यह प्रयत्न से पकाया गया है', 'प्रयत्न से काटा गया हे' प्रयत्नपूर्वक लालनपालन किया गया है, तथा यह प्रहार गाढ है, ऐसा (निर्दोष वचन) बोले । सूत्र - ३३६
यह वस्तु सर्वोत्कृष्ट, बहुमूल्य, अतुल है, इसके समान दूसरी कोई वस्तु नहीं है, यह वस्तु अवर्णनीय या अप्रीतिकर है; इत्यादि व्यापारविषयक वचन न कहे। सूत्र - ३३७
कोई गृहस्थ किसी को संदेश कहने को कहे तब 'मैं तुम्हारी सब बातें उससे अवश्य कह दूंगा' (अथवा किसी को संदेश कहलाते हुए) 'यह सब उससे कह देना'; इस प्रकार न बोले; किन्तु पूर्वापर विचार करके बोले। सूत्र - ३३८
अच्छा किया यह खरीद लिया अथवा बेच दिया, यह पदार्थ खराब है, खरीदने योग्य नहीं है अथवा अच्छा है, खरीदने योग्य है; इस माल को ले लो अथवा बेच डालो (इस प्रकार) व्यवसाय-सम्बन्धी (वचन), साधु न कहे। सूत्र - ३३९
कदाचित् कोई अल्पमूल्य अथवा बहुमूल्य माल खरीदने या बेचने के विषय में (पूछे तो) व्यावसायिक प्रयोजन का प्रसंग उपस्थित होने पर साधु या साध्वी निरवद्य वचन बोले । सूत्र - ३४०
इसी प्रकार धीर और प्रज्ञावान् साधु असंयमी को-यहाँ बैठ, इधर आ, यह कार्य कर, सो जा, खड़ा हो जा या चला जा, इस प्रकार न कहे । सूत्र - ३४१-३४२
ये बहुत से असाधु लोक में साधु कहलाते हैं; किन्तु निर्ग्रन्थ साधु असाधु को–'यह साधु है', इस प्रकार न कहे, साधु को ही-'यह साधु है;' ऐसा कहे । ज्ञान और दर्शन से सम्पन्न तथा संयम और तप में रत-ऐसे सद्गुणों से समायुक्त संयमी को ही साधु कहे । सूत्र - ३४३
देवों, मनुष्यों अथवा तिर्यञ्चों का परस्पर संग्राम होने पर अमुक की विजय हो, अथवा न हो,-इस प्रकार न कहे। सूत्र - ३४४
वायु, वृष्टि, सर्दी, गर्मी, क्षेम, सुभिक्ष अथवा शिव, ये कब होंगे? अथवा ये न हों इस प्रकार न कहे। सूत्र - ३४५
मेघ को, आकाश को अथवा मानव को-'यह देव है, यह देव है', इस प्रकार की भाषा न बोले । किन्तु'यह मेघ' उमड़ रहा है, यह मेघमाला बरस पड़ी है, इस प्रकार बोले । सूत्र - ३४६
साधु, नभ और मेघ को-अन्तरिक्ष तथा गुह्यानुचरित कहे तथा ऋद्धिमान् मनुष्य को 'यह ऋद्धिशाली है', ऐसा कहे।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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