Book Title: Agam 42 Dashvaikalik Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-८-आचारप्रणिधि सूत्र -३५१
आचार-प्रणिधि को पाकर, भिक्षु को जिस प्रकार (जो) करना चाहिए, वह मैं तुम्हें कहूँगा, जिसे तुम अनुक्रम से मुझ से सुनो। सूत्र - ३५२-३५३
__पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय तथा वनस्पतिकाय तथा त्रस प्राणी; ये जीव हैं, ऐसा महर्षि ने कहा है । उन के प्रति मन, वचन और काया से सदा अहिंसामय व्यापारपूर्वक ही रहना चाहिए । इस प्रकार (अहिंसकवृत्ति से रहने वाला) संयत होता है। सूत्र - ३५४-३५५
सुसमाहित संयमी तीन करण तीन योग से पृथ्वी, भित्ति, शिला अथवा मिट्टी का, ढेले का स्वयं भेदन न करे और न उसे कुरेदे, सचित्त पृथ्वी और सचित्त रज से संसृष्ट आसन पर न बैठे । (यदि बैठना हो तो) जिसकी वह भूमि हो, उससे आज्ञा मांग कर तथा प्रमार्जन करके बैठे। सूत्र - ३५६-३५७
संयमी साधु शीत उदक, ओले, वर्षा के जल और हिम का सेवन न करे । तपा हुआ गर्म जल तथा प्रासुक जल ही ग्रहण करे । सचित जल से भीगे हुए अपने शरीर को न तो पोंछे और न ही मले । तथाभूत शरीर को देखकर, उसका स्पर्श न करे। सूत्र - ३५८
मुनि जलते हुए अंगारे, अग्नि, त्रुटित अग्नि की ज्वाला, जलती हुई लकड़ी को न प्रदीप्त करे, न हिलाए और न उसे बुझाए। सूत्र - ३५९
साधु ताड़ के पंखे से, पत्ते से, वृक्ष की शाखा से अथवा सामान्य पंखे से अपने शरीर को अथवा बाह्य पुद् गल को भी हवा न करे। सूत्र - ३६०-३६१
मुनि तृण, वृक्ष, फल, तथा मूल का छेदन न करे, विविध प्रकार के सचित्त बीजों की मन से भी इच्छा न करे। वनकुंजों में, बीजों, हरित तथा उदक, उत्तिंग और पनक पर खड़ा न रहे। सूत्र - ३६२
मुनि वचन अथवा कर्म से त्रस प्राणियों की हिंसा न करे । समस्त जीवों की हिंसा से उपरत साधु विविध स्वरूप वाले जगत् को (विवेकपूर्वक) देखे । सूत्र - ३६३-३६६
संयमी साधु जिन्हें जान कर समस्त जीवों के प्रति दया का अधिकारी बनता है, उन आठ प्रकार के सूक्ष्मों को भलीभांति देखकर ही बैठे, खड़ा हो अथवा सोए । वे आठ सूक्ष्म कौन-कौन से हैं ?
तब मेधावी और विचक्षण कहे कि वे ये हैं- स्नेहसूक्ष्म, पुष्पसूक्ष्म, प्राणिसूक्ष्म, उत्तिंग सूक्ष्म, पनकसूक्ष्म, बीजसूक्ष्म, हरितसूक्ष्म और आठवाँ अण्डसूक्ष्म । सभी इन्द्रियों के विषय में राग-द्वेष रहित संयमी साधु इसी प्रकार इन सूक्ष्म जीवों को सर्व प्रकार से जान कर सदा अप्रमत्त रहता हुआ यतना करे ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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