Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra
Author(s): Kheemvijay
Publisher: Mehta Family Trust
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९४४९४४९४ श्रीकल्पसूत्रम्
तस्स णं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खे णं महाविजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरीयाओ भहविमाणाओ वीसंसागरोवमट्ठिइयाओ, उक्खणं भवक्खणं टिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता ।
(तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे) ते अणे जने ते समये श्रमा भगवान महावीर (जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्वे आसाढसुद्धे ) ४ ते ग्रीष्माणनो योथोमास, ग्रीष्म अजनुं पजवाडियुं ( तस्स णं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्वे णं) ते खाषाढ भासना शुडल पजवाडियानी छठनी रात्रिने विषे ( महाविजय पुप्फुत्तरवर पुंडरीयाओ महविमाणाओ ) भ्यां महान् विश्य छे सेवा तथा श्रीभं श्रेष्ठ विभानोमां श्वेत उभण ठेवा अर्थात् अत्यंत श्रेष्ठ सेवा पुष्पोत्तर नामना महाविभान थडी, ते विभानु देवु छे ? - (वीसंसागरोवमहिइ याओ) भ्यां દેવોની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ વીશ સાગરોપમ હોય છે, ભગવંતની પણ ત્યાં તેટલી સ્થિતિ હતી, એવા તે પુષ્પોત્તર વિમાન थडी (आउक्रवएणं) हेव संबंधी आयुष्यनो क्षय थतां (भवक्रवएणं) हेव संबंधी गति नाम अर्मनो क्षय थतां अने (ठिइक्वएणं) वैडिय शरीरनी स्थितिनो क्षय थतां (अनंतरं चयं चइत्ता) खतरा विना य्यवन
इहेव जंबुद्दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे, इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए वइक्कंताए, सुसमाए वइक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वइक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहुवइक्कंताए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए- पंचहत्तरिवासेहिं अद्धनवमेर्हि य
अरीने (इहेव जंबुद्दवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे) खा ४ जुद्वीप नामना द्वीपने विषे भरतक्षेत्रमां दृक्षिशार्ध भरतने विषे (इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुमाए समाए वइक्कंताए) मा अवसर्पिणीमां सुषभसुषमा नामनी यार झेडाडोडी सागरोपमना प्रमाशवाणी पहेली खारो (सुसमाए समाए वइक्कंताए) अवसर्पिणीमां सुषभसुषमा नामनी थार डोडाडोडी सागरोपमनाप्रमाशवाणो पहेलो खारो (सुसमदुसमाए समाए वइक्कंताए) सुषमा नाम नोत्रा छोडाडोडी सागरोपमना प्रमाशवाणो त्रीभे खारो (दुसमसुसमाए समाए बड़क्कं ताए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए) ने हुषभासुषमा नामनो जेतांसीश हभर वर्ष आएगी खेड झेडाडोडी सागरोयमना प्रभाशवाणो योथो जारो घशो जरो गया बा, योथो खारो डेटसो जाडी रहेतां ? ते उहे छे - (पंचहत्तरिवासे हिं अद्धनवमेहिं य मासेहिं सेसहिं ) थोथा खाराना पंथोतेर वरस भने साडा सा भास जाडी रहेता (इक्कवीसएतित्थयरेहिं इक्रवागकुलसमुप्पन्नेहिं कावसगुत्तेहिं) क्ष्वाणमां उत्पन्न थयेला भने अश्यपगोत्रवाणा खेडवीस तीर्थंकरो (दोहि य हरिवंशकुलसमुप्पन्नेहिं गोयमसगुत्तेहिं)
मासेहिं सेसेर्हि, इक्कवीसाए तित्थयरेहिं इक्खागकुलसमुप्पनेहिं कासवगुत्तेहिं दोहिं य हरिवंस - कुलसमुप्पन्नेहिं गोयमसगुत्तेहिं - तेवीसाए तित्थयरेहिं वइक्कंतेर्हि, समणे भगवं महावीरे चरमतित्थयरे पुव्यतित्थयरनिद्दिट्टे, माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए पुव्वत्तारकालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिंसि गन्भत्ताए वक्कंते ॥ १२॥
(त्तेहिं ) तथा हरिवंशङ्गुणमां उत्पन्न थयेला गौतम गोत्रवाणा श्री मुनिसुव्रतस्वामी तथा श्रीनेमिनाथक से जे तीर्थं रो (तेवीसाए तित्थयरेहिं वइक्कंतेहिं ) खेवी रीते ऋषभदेवथी आरंभीने पार्श्वनाथ पर्यंत त्रेवीश तीर्थं रो थया जा (समणे भगवं महावीरे चरमतित्थारे पुव्वतित्थयरनिद्दिट्ठे) "छेस्सां तीर्थं४२ महावीर थशे" से प्रमाणे
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