Book Title: Agam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र सूत्र-१५ पहले प्राभृतप्राभृत में सूर्योदयकाल में आठ प्रतिपत्तियाँ कही हैं । दूसरे प्राभृतप्राभृत में भेदघात सम्बन्धी दो और तीसरे प्राभृतप्राभृत में मुहूर्त्तगति सम्बन्धी चार प्रतिपत्तियाँ है । सूत्र - १६-१९ दसवें प्राभृत के पहले प्राभृतप्राभृत में नक्षत्रों की आवलिका, दूसरे में मुहूर्त्ताग्र, तीसरे में पूर्व पश्चिमादि विभाग, चौथे में योग, पाँचवे में कुल, छटे में पूर्णमासी, सातवे में सन्निपात और आठवे में संस्थिति, नवमें प्राभृत-प्राभृत में ताराओं का परिमाण, दसवे में नक्षत्र नेता, ग्यारहवे में चन्द्रमार्ग, बारहवे में अधिपति देवता और तेरहवे में मुहूर्त, चौदहवे में दिन और रात्रि, पन्द्रहवे में तिथियाँ, सोलहवे में नक्षत्रों के गोत्र, सत्तरहवे में नक्षत्र का भोजन, अट्ठारहवे में सूर्य की चार-गति, उन्नीसवे में मास और बीसवे में संवत्सर, एकवीस में प्राभूतप्राभूत में नक्षत्रद्वार तथा बाईसवे में नक्षत्रविचय इस तरह दसवें प्राभृत में बाईस अधिकार हैं। सूत्र - २० उस काल उस समय में मिथिला नामक नगरी थी । ऋद्धि सम्पन्न और समृद्ध ऐसे प्रमुदितजन वहाँ रहते थे। यावत् यह प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थी । उस मिथिला नगरी के ईशानकोण में माणिभद्र नामक एक चैत्य था । वहाँ जितशत्रु राजा एवं धारिणी राणी थी । उस काल और उस समय में भगवान महावीर वहाँ पधारे। पर्षदा नीकली। धर्मोपदेश हआ यावत् राजा जिस दिशा से आया उसी दिशा में वापस लौटा। सूत्र - २१ उस काल - उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति थी, जिनका गौतम गोत्र था, वे सात हाथ ऊंचे और समचतुरस्र संस्थानवाले थे यावत् उसने कहा। प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-१ सूत्र-२२ आपके अभिप्राय से मुहूर्त की क्षय-वृद्धि कैसे होती है ? यह ८१९ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त का २७/६७ भाग से होती है। सूत्र - २३ जिस समय में सूर्य सर्वाभ्यन्तर मुहूर्त से नीकलकर प्रतिदिन एक मंडलाचार से यावत् सर्वबाह्य मंडल में तथा सर्वबाह्य मंडल से अपसरण करता हआ सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करता है, यह समय कितने रात्रि-दिन का कहा है? यह ३६६ रात्रिदिन का है। सूत्र - २४ पूर्वोक्त कालमान में सूर्य कितने मंडलों में गति करता है ? वह १८४ मंडलों में गति करता है । १८२ मंडलों में दो बार गमन करता है । सर्व अभ्यन्तर मंडल से नीकलकर सर्व बाह्य मंडल में प्रविष्ट होता हआ सूर्य सर्व अभ्य-न्तर तथा सर्व बाह्य मंडल में दो बार गमन करता है। सूत्र - २५ सूर्य के उक्त गमनागमन के दौरान एक संवत्सर में अट्ठारह मुहूर्त प्रमाणवाला एक दिन और अट्ठारह मुहूर्त प्रमाण की एक रात्रि होती है । तथा बारह मुहूर्त का एक दिन और बारह मुहूर्त्तवाली एक रात्रि होती है। पहले छ मास में अट्ठारह मुहूर्त की एक रात्रि और बारह मुहूर्त का एक दिन होता है । तथा दूसरे छ मास में अट्ठारह मुहूर्त का दिन और बारह मुहूर्त की एक रात्रि होती है । लेकिन पहले या दूसरे छ मास में पन्द्रह मुहूर्त का दिवस या रात्रि नहीं होती इसका क्या हेतु है ? वह मुझे बताईए । यह जंबूद्वीप नामक द्वीप है । सर्व द्वीप समुद्रों से घीरा हुआ है । जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करके मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (चन्द्रप्रज्ञप्ति)" आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 6Page Navigation
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