Book Title: Agam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 33
________________ आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र पर बासठवीं पूर्णिमा को समाप्त करता है । सूत्र-१०० इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम अमावास्या में चंद्र अश्लेषा नक्षत्र से योग करता है । आश्लेषा नक्षत्र का एक मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के ४०/६२ भाग मुहूर्त तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके बासठ चूर्णिका भाग शेष रहने पर चन्द्र प्रथम अमावास्या को समाप्त करता है, अश्लेषा नक्षत्र के ही साथ चन्द्र के समान गणित से सूर्य प्रथम अमावास्या को समाप्त करता है। अन्तिम अमावास्या को चंद्र और सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र से योग करके समाप्त करते हैं । उस समय पुनर्वसु नक्षत्र के २२ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के ४२/६२ भाग शेष रहता है। सूत्र-१०१ ___ जिस नक्षत्र के साथ चन्द्र जिस देशमें योग करता है वही ८१९ मुहूर्त तथा एक मुहूर्त के २४/६२ भाग तथा बासठवें भाग को ६७ से विभक्त करके ६२ चूर्णिका भाग को ग्रहण करके पुनः वही चंद्र अन्य जिस प्रदेश में सदृश नक्षत्र के साथ योग करता है, विवक्षित दिन में चन्द्र जिस नक्षत्र से जिस प्रदेश में योग करता है वह १६३८ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के 49/६२ भाग तथा बांसठवे भाग को ६७ से विभक्त करके ६५ चूर्णिका भाग ग्रहण करके पुनः वही चंद्र उसी नक्षत्र से योग करता है । जिस मंडल प्रदेश में जिस नक्षत्र के साथ चंद्र योग करता है, उसी मंडल में ५४९०० मुहूर्त ग्रहण करके पुनः वही चंद्र अन्य सदृश नक्षत्र के साथ योग करता है । विवक्षित दिवस में चन्द्र जिस नक्षत्र से योग करता है, वही चंद्र १०९८०० मुहूर्त्त ग्रहण करके पुनः वही चन्द्र उसी नक्षत्र से योग करता है। विवक्षित दिवस में सूर्य जिस मंडलप्रदेश में जिस नक्षत्र से योग करता है, वही सूर्य ३६६ अहोरात्र ग्रहण करके पुनः वही सूर्य अन्य सदृश नक्षत्र से उसी प्रदेश में योग करता है । विवक्षित दिवस में जिस नक्षत्र के साथ जिस मंडल प्रदेश में योग करता है, वही सूर्य ७३२ रात्रिदिनों को ग्रहण करके पुनः उसी नक्षत्र से योग करता है । इसी प्रकार १८३० अहोरात्र में वही सूर्य उसी प्रदेशमंडल में अन्य सदृश नक्षत्र से योग करता है और ३६६० अहोरात्र वहीं सूर्य पुनः उसी पूर्वनक्षत्र से योग करता है। सूत्र-१०२ जिस समय यह चंद्र गति समापन्न होता है, उस समय अन्य चंद्र भी गति समापन्न होता है; जब अन्य चंद्र गति समापन्न होता है उस समय यह चंद्र भी गति समापन्न होता है । इसी तरह सूर्य के ग्रह के और नक्षत्र के सम्बन्ध में भी जानना । जिस समय यह चंद्र योगयुक्त होता है, उस समय अन्य चंद्र भी योगयुक्त होता है और जिस समय अन्य चंद्र योगयुक्त होता है उस समय यह चंद्र भी योगयुक्त होता है । इस तरह सूर्य के, ग्रह के और नक्षत्र के विषय में भी समझ लेना । चन्द्र, सूर्य ग्रह और नक्षत्र सदा योगयुक्त ही होते हैं। प्राभृत-१०-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 33

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