Book Title: Agam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति'
प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र बिना यह चन्द्र अन्तिम बावनवीं पूर्णिमा के साथ योग करता है । सूत्र-९६
इस पंचसंवत्सरात्मक युग में प्रथम पूर्णिमा के साथ सूर्य किस मंडलप्रदेश में रहकर योग करता है ? जिस देश में सूर्य सर्वान्तिम बासठवीं पूर्णिमा के साथ योग करता है उस मंडल के १२४ भाग करके चोरानवे भाग को ग्रहण करके यह सूर्य प्रथम पूर्णिमा से योग करता है । इसी अभिलाप से पूर्ववत् इस संवत्सर की दूसरी और तीसरी पूर्णिमा से भी योग करता है । इसी तरह जिस मंडल प्रदेश में यह सूर्य तीसरी पूर्णिमा को पूर्ण करता है उस पूर्णिमा स्थान के मंडल को १२४ भाग करके ८४६वा भाग ग्रहण करके यह सूर्य बारहवीं पूर्णिमा के साथ योग करता है । इसी अभिलाप से वह सूर्य उन उन मंडल के १२४ भाग करके ९४वे-९४वे भाग को ग्रहण करके उन-उन प्रदेशमें आगे-आगे की पूर्णिमा से योग करता है । चन्द्र समान अभिलाप से बावनवीं पूर्णिमाके गणितको समझना सूत्र-९७
इस पंच संवत्सरात्मक युग में चन्द्र का प्रथम अमावास्या के साथ योग बताते हैं जिस देश में अन्तिम बावनवीं अमावास्या के साथ चन्द्र योग करके पूर्ण करता है, उस देश-मंडल के १२४ भाग करके उसके बत्तीसवें भाग में प्रथम अमावास्या के साथ चंद्र योग करता है, चन्द्र का पूर्णिमा के साथ योग जिस अभिलाप से बताए हैं उसी अभिलाप से अमावास्या के योग को समझ लेना यावत् जिस देश में चंद्र अन्तिम पूर्णिमा के साथ योग करता है उसी देश में वहवह पूर्णिमा स्थानरूप मंडल के १२४ भाग करके सोलह भाग को छोड़कर यह चन्द्र बासठवीं अमावास्या के साथ योग करता है। सूत्र-९८
अब सूर्य का अमावास्या के साथ योग बताते हैं जिस मंडल प्रदेश में सूर्य अन्तिम बासठवीं अमावास्या के साथ योग करता है, उस अमावास्या स्थानरूप मंडल को १२४ भाग करके ९४वे भाग ग्रहण करके यह सूर्य इस संवत्सर की प्रथम अमावास्या के साथ योग करता है, इस प्रकार जैसे सूर्य का पूर्णिमा के साथ योग बताया था, उसीके समान अमावास्या को भी समझ लेना यावत् अन्तिम बावनवीं अमावास्या के बारे में कहते हैं कि जिस मंडलप्रदेश में सूर्य अन्तिम बासठवीं पूर्णिमा को पूर्ण करता है, उस पूर्णिमास्थान मंडल के १२४ भाग करके ४७ भाग छोड़कर यह सूर्य अन्तिम बासठवी अमावास्या के साथ योग करता है। सूत्र-९९
इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम पूर्णिमा में चंद्र किस नक्षत्र से योग करता है ? घनिष्ठा नक्षत्र से योग करता है, घनिष्ठा नक्षत्र के तीन मुहूर्त पूर्ण एवं एक मुहूर्त के उन्नीस बासट्ठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके जो पैंसठ चूर्णिका भाग शेष रहता है, उस समय में चंद्र प्रथम पूर्णिमा को समाप्त करता है । सूर्य पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के अट्ठाईस मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के 48/62 भाग तथा बासठवें भाग के सडसठ भाग करके बत्तीस चूर्णिका भाग शेष रहने पर सूर्य प्रथम पूर्णिमा को समाप्त करता है।
दूसरी पूर्णिमा-उत्तरा प्रौष्ठपदा के सत्ताईस मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के चौद बासट्ठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके जो बासठ चूर्णिका भाग शेष रहता है तब चंद्र दूसरी पूर्णिमा को समाप्त करता है और चित्रा नक्षत्र के एक मुहूर्त के अट्ठाईस बासठांस भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके तीस चूर्णिका शेष रहता है तब सूर्य दूसरी पूर्णिमा को समाप्त करता है ।तीसरी पूर्णिमा-उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के छब्बीस मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के छब्बीस बासट्ठांश भाग तथा बासठ भाग को सडसठ से विभक्त करके जो चोप्पन चूर्णिका भाग शेष रहता है तब चंद्र तीसरी पूर्णिमा को समाप्त करता है । पुनर्वसु नक्षत्र के सोलह मुहूर्त और एक मुहूर्त के आठ बासठांश भाग तथा बासठ भाग को सडसठ से विभक्त करके बीस चूर्णिका भाग शेष रहता है तब सूर्य तीसरी पूर्णिमा को पूर्ण करता है । चंद्र उत्तराषाढ़ा के चरम समय में बासठवीं पूर्णिमा को समाप्त करता है और सूर्य पुष्य नक्षत्र के उन्नीस मुहूर्त और एक मुहूर्त के तेयालीस बासट्ठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके तेतीस चूर्णिका भाग शेष रहने
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (चन्द्रप्रज्ञप्ति)" आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 32