Book Title: Agam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 51
________________ आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र सूत्र-२१२ यह पूर्वकथित प्रकार से प्रकृतार्थ ऐसे एवं अभव्यजनो के हृदय से दुर्लभ ऐसी भगवती ज्योतिषराज प्रज्ञप्ति का किर्तन किया है। सूत्र - २१३ इसको ग्रहण करके जड-गौरवयुक्त-मानी-प्रत्यनीक-अबहुश्रुत को यह प्रज्ञप्ति का ज्ञान देना नहीं चाहिए, इससे विपरीतजनों को यथा-सरल यावत् श्रुतवान् को देना चाहिए । सूत्र - २१४ श्रद्धा-धृति-धैर्य-उत्साह-उत्थान-बल-वीर्य-पराक्रम से युक्त होकर इसकी शिक्षा प्राप्त करनेवाले भी अयोग्य हो तो उनको इस प्रज्ञप्ति की प्ररूपणा नहीं करनी चाहिए । यथासूत्र - २१५ जो प्रवचन, कुल,गण या संघ से बाहर निकाले गए हो, ज्ञान-विनय से हीन हो, अरिहंत-गणधर और स्थवीर की मर्यादा से रहित हो ऐसे को यह प्रज्ञप्ति नहीं देना ।) सूत्र-२१६ धैर्य-उत्थान-उत्साह-कर्म-बल-वीर्य से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए । इनको नियम से आत्मा में धारण करना। अविनीत को कभी ये ज्ञान मत देना। सूत्र - २१७ जन्म-मृत्यु-क्लेश दोष से रहित भगवंत महावीर के सुख देनेवाले चरण कमल में विनय से नम्र हआ मैं वन्दना करता हूँ। सूत्र-२१८ ये संग्रहणी गाथाएं हैं। १७-चंद्रप्रज्ञप्ति-उपांगसूत्र-६ हिन्दी अनुवाद पूर्ण आगमसूत्र-१७- चंद्रप्रज्ञप्ति का | मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 51

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