Book Title: Agam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 31
________________ आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त और चित्रा ये सात नक्षत्र पश्चिमद्वारीय हैं; स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा ये सात नक्षत्र उत्तरद्वारीय हैं। प्राभृत-१० - प्राभृत-प्राभृत-२२ सूत्र-९२ हे भगवन् ! नक्षत्रविचय किस प्रकार से कहा है ? यह जंबूद्वीप सर्वद्वीप-समुद्रों से ठीक बीच में यावत् घीरा हुआ है । इस जंबूद्वीप में दो चन्द्र प्रकाशित हुए थे, होते हैं और होंगे; दो सूर्य तपे थे, तपते हैं और तपेंगे; छप्पन नक्षत्रों ने योग किया था, करते हैं ओर करेंगे वह नक्षत्र इस प्रकार है दो अभिजीत, दो श्रवण, दो घनिष्ठा. यावत् दो उत्तराषाढ़ा । इन छप्पन नक्षत्रों में दो अभिजीत नक्षत्र ऐसे हैं जो चन्द्र के साथ नवमुहूर्त एवं एक मुहूर्त में सत्ताईस सडसट्ठांश भाग से योग करते हैं, चन्द्र के साथ पन्द्रह मुहूर्त से योग करनेवाले नक्षत्र बारह हैं दो उत्तरा-भाद्रपदा, दो रोहिणी, दो पुनर्वसु, दो उत्तराफाल्गुनी, दो विशाखा और दो उत्तराषाढ़ा। तीस मुहूर्त से चन्द्र के साथ योग करनेवाले तीस नक्षत्र हैं । श्रवण, घनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, कृतिका, मृगशिर्ष, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढ़ा ये सब दो-दो । पीस्तालीश मुहूर्त से चन्द्र के साथ योग करनेवाले नक्षत्र बारह हैं । दो उत्तराभाद्रपद, दो रोहिणी, दो पुनर्वसु, दो उत्तराफाल्गुनी, दो विशाखा और दो उत्तराषाढ़ा । सूर्य के साथ चार अहोरात्र एवं छ मुहूर्त से योग करनेवाले नक्षत्र दो अभिजीत हैं, बारह नक्षत्र सूर्य के साथ छ अहोरात्र एवं इक्कीस मुहर्त से योग करते हैं दो शतभिषा, दो भरणी, दो आर्द्रा, दो अश्लेषा, दो स्वाति और दो ज्येष्ठा । तीस नक्षत्र सूर्य के साथ तेरह अहोरात्र एवं बारह मुहूर्त से योग करते हैं दो श्रवण यावत् दो पूर्वाषाढ़ा; १२ नक्षत्र सूर्य से २० अहोरात्र एवं तीन मुहूर्त से योग करते हैं । दो उत्तरा भाद्रपद यावत् दो उत्तराषाढ़ा सूत्र-९३ हे भगवन् ! सीमाविष्कम्भ किस प्रकार से है ? इन ५६ नक्षत्रोंमें दो अभिजीत नक्षत्र ऐसे हैं जिसका सीमा विष्कम्भ ६३० भाग एवं ३०/६७ भाग है; १२ नक्षत्र का १००५ एवं ३०/६७ भाग सीमा विष्कम्भ है दो शतभिषा यावत् दो ज्येष्ठा; तीस नक्षत्र का सीमाविष्कम्भ २०१० एवं तीस सडसट्ठांश भाग है-दो श्रवण यावत् दो पूर्वाषाढ़ा, बारह नक्षत्र ३०१५ एवं तीस सडसट्ठांश भाग सीमा विष्कम्भ से हैं दो उत्तरा भाद्रपदा यावत् दो उत्तराषाढ़ा। सूत्र-९४ इन ५६नक्षत्रोंमें ऐसे कोई नक्षत्र नहीं है जो सदा प्रातःकाल में चन्द्र से योग करके रहते हैं । सदा सायंकाल और सदा उभयकाल चन्द्र से योग करके रहनेवाला भी कोई नक्षत्र नहीं है । केवल दो अभिजीत नक्षत्र ऐसे हैं जो चुंवालीसवी-चुंवालीसवी अमावास्या में निश्चितरूप से प्रातःकाल में चन्द्र से योग करते हैं,पूर्णिमा में नहीं करते। सूत्र-९५ निश्चितरूप से बासठ पूर्णिमा एवं बासठ अमावास्याएं इन पाँच संवत्सरवाले युग में होती है । जिस देश में अर्थात् मंडल में चन्द्र सर्वान्तिम बांसठवी पूर्णिमा का योग करता है, उस पूर्णिमा स्थान से अनन्तर मंडल का १२४ भाग करके उसके बतीसवें भाग में वह चन्द्र पहली पूर्णिमा का योग करता है, वह पूर्णिमावाले चंद्रमंडल का १२४ भाग करके उसके बतीसवे भाग प्रदेश में यह दूसरी पूर्णिमा का चन्द्र योग करती है, इसी अभिलाप से इस संवत्सर की तीसरी पूर्णिमा को भी जानना । जिस प्रदेश चंद्र तीसरी पूर्णिमा का योग समाप्त करता है, उस पूर्णिमा स्थान से उस मंडल को १२४ भाग करके २२८ वें भाग में यह चन्द्र बारहवीं पूर्णिमा का योग करता है । इसी अभिलाप से उन-उन पूर्णिमा स्थान में एक-एक मंडल के १२४-१२४ भाग करके बत्तीसवें-बत्तीसवें भाग में इस संवत्सर की आगे-आगे की पूर्णिमा के साथ चन्द्र योग करता है । इसी जंबूद्वीप में पूर्व-पश्चिम लम्बी और उत्तर-दक्षिण विस्तार-वाली जीवारूप मंडल का १२४ भाग करके दक्षिण विभाग के चतुर्थांश मंडल के सत्ताईस भाग ग्रहण करके, अट्ठाईसवे भाग को बीससे विभक्त करके अट्ठारहवे भाग को ग्रहण करके तीन भाग एवं दो कला से पश्चास्थित चउब्भाग मंडल को प्राप्त किए मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (चन्द्रप्रज्ञप्ति)" आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 31

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