Book Title: Agam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र सूत्र-१०७ निश्चय से ऋतु छह प्रकार की है प्रावृट् वर्षारात्र, शरद, हेमंत, वसंत और ग्रीष्म । यह सब अगर चंद्रऋतु होती हैं तो दो-दो मास प्रमाण होती हैं, ३५४ अहोरात्र से गीनते हए सातिरेक उनसाठ-उनसाठ रात्रि प्रमाण होती है। इसमें छह अवमरात्र-क्षयदिवस कहे हैं-तीसरे, सातवें-ग्यारहवें, पन्द्रहवें-उन्नीसवें और तेईस में पर्व में अवमरात्रि होती है । छह अतिरात्र-वृद्धिदिवस कहे हैं जो चौथे-आठवें-बारहवें-सोलहवें-बीसवें और चौबीसवें पर्व में होता है। सूत्र-१०८ सूर्यमास की अपेक्षा से छ अतिरात्र और चांद्रमास की अपेक्षा से छह अवमरात्र प्रत्येक वर्षमें आते हैं सूत्र - १०९ एक युग में पाँच वर्षाकालिक और पाँच हैमन्तिक ऐसी दश आवृत्ति होती है । इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम वर्षाकालिक आवृत्ति में चंद्र अभिजीत नक्षत्र से योग करता है, उस समय में सूर्य पुष्य नक्षत्र से योग करता है, पुष्य नक्षत्र से उनतीस मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के तेयालीस बासठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ से विभक्त करके तैंतीस चूर्णिका भाग प्रमाण शेष रहता है तब सूर्य पहली वर्षाकालिक आवृत्ति को पूर्ण करता है । दूसरी वर्षाकालिकी आवृत्ति में चंद्र मृगशिरा नक्षत्र से और सूर्य पुष्य नक्षत्र से योग करता है, तीसरी वर्षाकालिकी आवृत्ति में चंद्र विशाखा नक्षत्र से और सूर्य पुष्य नक्षत्र से योग करता है, चौथी में चंद्र रेवती के साथ और सूर्य पुष्य के साथ ही योग करता है, पाँचवी में चंद्र पूर्वाफाल्गुनी के साथ और पुष्य के साथ ही योग करता है । पुष्य नक्षत्र गणित प्रथम आवृत्ति के समान ही है, चन्द्र के साथ योग करनेवाले नक्षत्र गणितमें भिन्नता है वह मूलपाठ से जान लेना। सूत्र-११० __ इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम हैमन्तकालिकी आवृत्ति में चंद्र हस्तनक्षत्र से और सूर्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र से योग करता है, दूसरी हैमन्तकालिकी आवृत्ति में चंद्र शतभिषा नक्षत्र से योग करता है, इसी तरह तीसरी में चन्द्र का योग पुष्य के साथ, चौथी में चन्द्र का योग मूल के साथ और पाँचवी हैमन्तकालिकी आवृत्ति में चन्द्र का योगकृतिका के साथ होता है और इन सब में सूर्य का योग उत्तराषाढ़ा के साथ ही रहता है। प्रथम हैमन्तकालिकी आवृत्ति में चन्द्र जब हस्त नक्षत्र से योग करता है तो हस्त नक्षत्र पाँच मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के पचास बासठांश भाग तथा बासठवें भाग के सडसठ भाग से विभक्त करके साठ चूर्णिका भाग शेष रहते हैं और सूर्य का उत्तराषाढ़ा नक्षत्र से योग होता है तब उत्तराषाढ़ा का चरम समय होता है, पाँचों आवृत्ति में उत्तरा-षाढ़ा का गणित इसी प्रकार का है, लेकिन चंद्र के साथ योग करनेवाले नक्षत्रों में भिन्नता है, वह मूल पाठ स जान लेना। सूत्र-१११ निश्चय से योग दस प्रकार के हैं वृषभानुजात, वेणुकानुजात, मंच, मंचातिमंच, छत्र, छत्रातिछत्र, युगनद्ध, धनसंमर्द, प्रीणित और मंडुकप्लुत । इसमें छत्रातिछत्र नामक योग चंद्र किस देश में करता है ? जंबूद्वीप की पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण लम्बी जीवा के १२४ भाग करके नैऋत्य कोने के चतुर्थांश प्रदेश में सत्ताईस अंशो को भोगकर अट्ठाइसवें को बीस से विभक्त करके अट्ठारह भाग ग्रहण करके तीन अंश और दो कला से नैऋत्य कोण के समीप चन्द्र रहता है । उसमें चन्द्र उपर, मध्य में नक्षत्र और नीचे सूर्य होने से छत्रातिछत्र योग होते हैं और चन्द्र चित्रानक्षत्र के अन्त भाग में रहता है। प्राभृत-१२-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 36

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52