Book Title: Agam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र चालीश सडसठांश भाग जाकर स्वयं या दूसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में गमन करता है फिर तेरह सडसठांश भाग जाकर दूसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में गमन करता है, फिर तेरह सडसठांश भाग जाकर स्वयं या दूसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में गमन करता है इतने में बाह्य तृतीयपूर्वीय मंडल समाप्त हो जाता है । वह तीसरे अयन को पूर्ण करके चंद्र पश्चिम भाग से बाह्य के चौथे पश्चिमी अर्द्धमंडल में आठ सडसठांश भाग के इकतीस सडसठांश भाग से छेदकर अट्ठारह भाग जाकर स्वयं या दूसरे द्वारा चीर्ण मंडल में गमन करता है यावत् पूर्वोक्त गणित से बाह्य चौथा पश्चिमी अर्धमंडल को समाप्त करता है । इस प्रकार चंद्रमास में चंद्र चोप्पन भाग के तेरह ग में दो तेरह भाग जाकर परचीर्ण मंडल में गमन करके, तेरह तेरह भाग जाकर स्वयं चीर्ण मंडल में गमन करके यावत् इसी तरह प्रतिचीर्ण करता है, यह हुआ चन्द्र का अभिगमन-निष्क्रमण-वृद्धि-निर्वृद्धि इत्यादि। प्राभृत-१३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 38

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52