Book Title: Agam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 46
________________ आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र सूत्र-१६८ दो चंद्र और दो सूर्य की एक पिटक होती है, ऐसी छासठ पिटक मनुष्यलोक में कही गई है। सूत्र-१६९ एक एक पिटक में छप्पन नक्षत्र होते हैं, ऐसी छासठ पिटक मनुष्यलोक में बताई गई है। सूत्र-१७० एक एक पिटक में १७६ ग्रह होते हैं, ऐसी छासठ पिटक मनुष्य लोक में फरमाते हैं। सूत्र-१७१ दो सूर्य, दो चंद्र की ऐसी चार पंक्तियाँ होती हैं, मनुष्य लोक में ऐसी छासठ-छासठ पंक्तियाँ होती है। सूत्र-१७२ __ छप्पन नक्षत्र की एक पंक्ति, ऐसी छासठ-छासठ पंक्ति मनुष्यलोक में होती है । सूत्र-१७३ १७६ ग्रह की एक पंक्ति ऐसी छासठ-छासठ पंक्ति मनुष्यलोक में होती है। सूत्र-१७४ चंद्र, सूर्य, ग्रहगण अनवस्थित योगवाले हैं और ये सब मेरुपर्वत को प्रदक्षिणावर्त्त से भ्रमण करते हैं सूत्र-१७५ नक्षत्र और तारागण अवस्थित मंडलवाले हैं, वे भी प्रदक्षिणावर्त से मेरुपर्वत का भ्रमण करते हैं। सूत्र - १७६ सूर्य और चंद्र का ऊर्ध्व या अधो में संक्रमण नहीं होता, वे मंडल में सर्वाभ्यन्तर-सर्वबाह्य और तीर्छा संक्रमण करते हैं। सूत्र-१७७ सूर्य, चंद्र, नक्षत्र और महाग्रह के भ्रमण विशेष से मनुष्य के सुख-दुःख होते हैं। सूत्र-१७८ सूर्य-चंद्र के सर्वबाह्य मंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रवेश के समय नित्य तापक्षेत्र की वृद्धि होती है और उनके निष्क्रमण से क्रमशः तापक्षेत्र में हानि होती है। सूत्र-१७९ सूर्य-चंद्र का तापक्षेत्र मार्ग कलंबपुष्प के समान है, अंदर से संकुचित और बाहर से विस्तृत होता है । सूत्र-१८० चंद्र की वृद्धि और हानि कैसे होती है ? चंद्र किस अनुभाव से कृष्ण या प्रकाशवाला होता है ? सूत्र-१८१ कृष्णराहु का विमान अविरहित-नित्य चंद्र के साथ होता है, वह चंद्र विमान से चार अंगुल नीचे विचरण करता सूत्र- १८२ शुक्लपक्ष में जब चंद्र की वृद्धि होती है, तब एक एक दिवस में बासठ-बासठ भाग प्रमाण से चंद्र उस का क्षय करता है। सूत्र-१८३ पन्द्रह भाग से पन्द्रहवे दिन में चंद्र उस का वरण करता है और पन्द्रह भाग से पुनः उस का अवक्रम होता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 46

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