Book Title: Agam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति'
प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र आवलिका, आनप्राण, स्तोक यावत् ऋतु के दश आलापक समझ लेना । वर्षाऋतु के कथनानुसार हेमन्त और ग्रीष्मऋतु का कथन भी समझ लेना । जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अयन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अयन होता है और उत्तरार्द्ध में प्रथम अयन होता है तब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में अनन्तर पुरस्कृत् काल में पहला अयन प्राप्त होता है । जब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में प्रथम अयन होता है तब उत्तर-दक्षिण में अनन्तर पश्चातकृत् कालसमय में प्रथम अयन समाप्त होता है।
__ अयन के कथनानुसार संवत्सर, युग, शतवर्ष यावत् सागरोपम काल में भी समझ लेना । जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में उत्सर्पिणी होती है तब उत्तरार्द्ध में भी उत्सर्पिणी होती है, जब उत्तरार्द्ध में उत्सर्पिणी होती है तब मेरु पर्वत के पर्व-पश्चिम में उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी नहीं होती है क्योंकि-वहाँ अवस्थित काल होता है। इसी तरह अवसर्पिणी भी जान लेना । लवणसमद्र-धातकीखण्डद्वीप-कालोदसमद्र एवं अभ्यन्तर पुष्करवरार्द्धद्वीप इन सबका समस्त कथन जंबूद्वीप के समान ही समझ लेना, विशेष यह कि जंबूद्वीप के स्थान पर स्व-स्व द्वीप समुद्र को कहना।
प्राभृत-८-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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