Book Title: Agam 12 Uvavayaim Uvangsutt 01 Moolam Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Agam Shrut Prakashan View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपवाइयं ." नमो नमो निम्मल दंसणस्स पंचम गणधर श्री सुधर्मास्यामिने नमः १२ उववाइयं | पढम उवंगसुत्तं (१) तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्या-रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा पमुइयजगजाणवया आइण्ण जण-मणूसा हल-सयसहस्स-संकिट्ट-विकिट्ठ-लट्ठ-पन्नत्त-सेउसीमा कुक्कुडुसंडेय-गाम-पउरा उच्छु-जव-सालिकलिया गो-महिस-गवेलगप्पभूया आयारवंत-चेइय-जुवइविविहसण्णिविट्ठबहुला उक्कोडिय-गायगंदिभेय-पड-तक्कर-खंडरक्खरहिया खेमा निरुवद्दया सुभिक्खा दीसत्थसुहावासा अणेगकोडि कोडुंबियाइण्ण-निव्वुयसुहा नड-नट्टग-जल्ल-मल्ल मुठ्ठियवेलंदग-कहग-कवग-लासगआइक्खग-लंख-मंख-तूणइल-तुंबवीणियअणेगतालायराणु-चरिया आरामुन्नाण-अगड - तलाग - दीहिय-वप्पिणि गुणोपवेवा उब्बिद्ध-विउल-गंभीर-खायफ- लिहा चक-गय-मुरांदि-ओरोहे-सवग्धि-जमलकवाड-धणदुप्पवैसा धणुकडिलवंकपागारपरि-खित्ता कविसीसगवट्टरइय - संठियविरायमाणा अट्टलय-चरिय-दार-गोपुर-तोरण-उण्णय-सुविभत्तरायमग्गा छेयायरिव-रइय-ढफलिह-इंदकीला विवणि-वणियछित्त-सिप्पियाइण्ण-निबुवसुहा सिंघाडग-तिग-चउकक - चचर - पणियावण - विविहवत्थुपरिमंडिया सुरम्मा नरवइ-पविइण्ण-महिवइपहा अनेगवरतुरग - मत्तंकुंजर - रहपहकर-सीय-संदमाणिपाइण्ण-जाण-जुग्गा बिमउल-नवणलिणि-सोभियजला पंडुरवर-भवण-सण्णिमहिया उत्ताणगनयण-पेच्छणिज्जा पासादीचा दरिसणिज्जाअभिरुवा पडिरूवा11-1 (२) तीसे णं चंपाए नयरीए वहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए पुनभद्दे नायं चेहए होत्थाविराईए पुव्यपुरिस-पन्नत्ते पोराणे सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते सन्झए सघंटे सपडागाइपड़ागमंडिए सलोमहत्थे कयवेवदिए लाउल्लोइय-महिए गोसीससरसरतचंदण-दद्दर-दिण्णपंचंगुलितले उवचियवंदणकलसे बंदणघड-सुकय-तोरण-पडिदुवारदेसभाए आसत्तोसत्त-विज्ल-बट्ट-वाधारिय-मल्लदामकलावे पंचवण्ण - सरससुरभि - मुक्क - पुफपुंजोवयारकलिए कालागुरु-पवरकुंदुरुक्कतुरक्कधूव-मघमत-गंधुपुयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए नड-नट्टग-जल्ल-मल्लमुट्ठिय-वेलंबग-पवग-कहग-तासग-आइक्खग-नंख-मंख-तूणइल्ल-तुंदवीणिय-फुयग-मागहपरिगए बहुजण-जाणवयस्स विस्सुयकित्तिए बहुजणस्स आहुस्स आहुणिन्ने पाहुणिजे अच्चणिज्जे वंदणिजे नमंसणिजे प्रयणिजे सककारणिजे सम्माणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं घेइयं विणएणं पञ्जुवासणिज्जे दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सण्णिहियपाडिहरे जाग-सहस्सभाग-पडिच्छए बहुजणो अच्चेइ आगप्म पुनभई चेइयं पुत्रभई चेइयं ।1-2 (३) से णं पुत्रमद्दे चेइय एक्केणं महया वससंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्षिते से णं वणसंडे किण्हे किण्होभासे नीले नीलोमासे हरिय हरिओमासे सीए सीओमासे निद्धे निद्धोभासे तिव्ये तिव्योमासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सोयच्छाए निद्धे निद्धच्चाए तिव्वे तिव्वच्छाए धणकड़ियकडच्छाए रम्मे ते णं पायवे मूलमंते कंदमते खंधपते तयामते For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50