Book Title: Agam 11 Vipak Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक मृगाग्राम में एक जन्मान्ध पुरुष रहता था । आँखों वाला एक व्यक्ति उसकी लकड़ी पकड़े रहा रहता था । उसके मस्तक के बाल बिखरे हुए थे। उसके पीछे मक्खियों के झुण्ड भिनभिनाते रहते थे। ऐसा वह जन्मान्ध पुरुष मृगाग्राम नगर के घर-घर में कारुण्यमय भिक्षावृत्ति से अपनी आजीविका चला रहा था। उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर पधारे । जनता दर्शनार्थ नीकली । तदनन्तर विजय नामक क्षत्रिय राजा भी महाराजा कूणिक की तरह नगर से चला यावत् समवसरण में जाकर भगवान की पर्युपासना करने लगा। तदनन्तर वह जन्मान्ध पुरुष नगर के कोलाहलमय वातावरण को जानकर उस पुरुष के प्रति इस प्रकार बोला-हे देवानुप्रिय ! क्या आज मृगाग्राम नगर में इन्द्र-महोत्सव है ? यावत् नगर के बाहर जा रहे हैं? उस पुरुष ने जन्मान्ध से कहा-आज इस गाम में इन्द्रमहोत्सव नहीं है किन्तु श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे हैं; वहाँ ये सब जा रहे हैं । तब उस जन्मान्ध पुरुष ने कहा-'चलो, हम भी चलें और भगवान की पर्युपासना करें । तदनन्तर दण्ड के द्वारा आगे को ले जाया जाता हुआ वह जन्मान्ध पुरुष जहाँ पर श्रमण भगवान महावीर बिराजमान थे वहाँ पर आ गया । तीन बार प्रदक्षिणा करता है । वंदन-नमस्कार करता है। भगवान की पर्युपासना में तत्पर हुआ । तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने विजय राजा तथा नगर-जनत को धर्मोपदेश दिया । यावत् कथा सूनकर विजय राजा तथा परिषद् यथास्थान चले गए। सूत्र -६ उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति नाम के अनगार भी वहाँ बिराजमान थे । गौतमस्वामी ने उस जन्मान्ध पुरुष को देखा । जातश्रद्ध गौतम इस प्रकार बोले- अहो भगवन् ! क्या कोई ऐसा पुरुष भी है कि जो जन्मान्ध व जन्मान्धरूप हो ?' भगवान ने कहा-'हाँ, है !' 'हे प्रभो ! वह पुरुष कहाँ है ?' भगवान ने कहा-'हे गौतम ! इसी मृगाग्राम नगर में विजयनरेश का पुत्र और मृगादेवी का आत्मज मृगापत्र नाम का बालक है, जो जन्मतः अन्धा तथा जन्मान्धरूप है। उसके हाथ, पैर, चक्षु आदि अङ्गोपाङ्ग भी नहीं है। मात्र उन अङ्गोंपाङ्गों के आकार ही हैं । उसकी माता मृगादेवी उसका पालन-पोषण सावधानी पूर्वक छिपे-छिपे कर रही है । तदनन्तर भगवान गौतम ने भगवान महावीर स्वामी के चरणों में वन्दन-नमस्कार किया । उनसे बिनती की-हे प्रभो ! यदि आपकी अनुज्ञा प्राप्त हो तो मैं मृगापुत्र को देखना चाहता हूँ ।' भगवान ने फरमाया-'गौतम ! जैसे तुम्हें सुख उपजे वैसा करो। तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के द्वारा आज्ञा प्राप्त कर प्रसन्न व सन्तुष्ट हुए श्री गौतमस्वामी भगवान के पास से नीकले । विवेकपूर्वक भगवान गौतम स्वामी जहाँ मृगाग्राम नगर था वहाँ आकर नगर में प्रवेश किया। क्रमश: जहाँ मृगादेवी का घर था, गौतम स्वामी वहाँ पहुँच गए । तदनन्तर उस मृगादेवी ने भगवान गौतमस्वामी को आते हुए देखा और देखकर हर्षित प्रमुदित हुई, इस प्रकार कहने लगी-'भगवन् ! आपके पधारने का क्या प्रयोजन है ?' गौतम स्वामी ने कहा-'हे देवानुप्रिये ! मैं तुम्हारे पुत्र को देखने आया हूँ !' तब मृगादेवी ने मृगापुत्र के पश्चात् उत्पन्न हुए चार पुत्रों को वस्त्र-भूषणादि से अलंकृत करके गौतमस्वामी के चरणों में रखा और कहा-'भगवन् ! ये मेरे पुत्र हैं; इन्हें आप देख लीजिए । भगवान गौतम मृगादेवी से बोले-हे देवानुप्रिये ! मैं तुम्हारे इन पुत्रों को देखने के लिए यहाँ नहीं आया हूँ, किन्तु तुम्हारा जो ज्येष्ठ पुत्र मृगापुत्र है, जो जन्मान्ध व जन्मान्धरूप है, तथा जिसको तुमने एकान्त भूमिगृह में गुप्तरूप से सावधानी पूर्वक रखा है और छिपे-छिपे खानपान आदि के द्वारा जिसके पालन-पोषण में सावधान रह रही हो, उसी को देखने मैं यहाँ आया है। यह सुनकर मगादेवी ने गौतम से निवेदन किया कि-वे कौन तथारूप ऐसे ज्ञानी व तपस्वी हैं, जिन्होंने मेरे द्वारा एकान्त गुप्त रखी यह बात आपको यथार्थरूप में बता दी। जिससे आपने यह गुप्त रहस्य सरलता से जान लिया ? तब भगवान गौतम स्वामी ने कहाहे भद्रे ! मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर ने ही मुझे यह रहस्य बताया है।। जिस समय मृगादेवी भगवान गौतमस्वामी के साथ वार्तालाप कर रही थी उसी समय मृगापुत्र दारक के भोजन का समय हो गया । तब मृगादेवी ने भगवान गौतमस्वामी से निवेदन किया-'भगवन् ! आप यहीं ठहरीये, मैं मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 6Page Navigation
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