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आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक ज्ञाति, निजक का विपुल पुष्प, माला, गन्ध, वस्त्र, अलङ्कार आदि से सत्कार करता है, सन्मान करता है । देवदत्ता-नामक अपनी पुत्री को स्नान करवा कर यावत् शारीरिक आभूषणों द्वारा उसके शरीर को विभूषित कर पुरुषसहस्र-वाहिनी में बिठाता है । बहुत से मित्र व ज्ञातिजनों आदि से घिरा हुआ सर्व प्रकार के ठाठ-ऋद्धि से तथा वादित्र-ध्वनि के साथ रोहीतक नगरके बीचों बीच होकर जहाँ वैश्रमण राजा का घर था और जहाँ वैश्रमण राजा था, वहाँ आकर हाथ जोड़कर उसे बधाया । वैश्रमण राजा को देवदत्ता कन्या अर्पण कर दी।
तब राजा वैश्रमण लाई हुई उस देवदत्ता दारिका को देखकर बड़े हर्षित हुए और विपुल अशनादिक तैयार कराया और मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी व परिजनों को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराया । उनका पुष्प, वस्त्र, गंध, माला व अलङ्कार आदि से सत्कार-सन्मान किया । तदनन्तर कुमार पुष्पनन्दी और कुमारी देवदत्ता को पट्टक-पर बैठाकर श्वेत व पीत अर्थात् चाँदी सोने के कलशों से स्नान कराते हैं । सुन्दर वेशभूषा से सुसज्जित करते हैं । अग्निहोम कराते हैं । बाद में कुमार पुष्पनन्दी को कुमारी देवदत्ता का पाणिग्रहण कराते हैं । तदनन्तर वह वैश्रमणदत्त नरेश पुष्पनन्दी व देवदत्ता का सम्पूर्ण ऋद्धि यावत् महान वाद्य-ध्वनि और ऋद्धिसमुदाय व सन्मान-समुदाय के साथ विवाह रचाते हैं । तदनन्तर देवदत्ता के माता-पिता तथा उनके साथ आने वाले अन्य अनेक मित्रजनों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धीजनों और परिजनों का भी विपुल अशनादिक तथा वस्त्र, गन्ध, माला और अलङ्कारादि से सत्कार व सन्मान करने के बाद उन्हें बिदा करते हैं । राजकुमार पुष्पनन्दी श्रेष्ठिपुत्री देवदत्ता के साथ उत्तम प्रासाद में विविध प्रकार के वाद्यों और जिनमें मृदङ्ग बज रहे हैं, ऐसे ३२ प्रकार के नाटकों द्वारा उपगीयमान-प्रशंसित होते सानंद मनुष्य संबंधी शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंधरूप भोग भोगते हुए समय बिताने लगे।
कुछ समय बाद महाराजा वैश्रमण कालधर्म को प्राप्त हो गए । उनकी मृत्यु पर शोकग्रस्त पुष्पनन्दी ने बड़े समारोह के साथ उनका निस्सरण किया यावत् मृतक-कर्म करके राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए यावत् युवराज से राजा बन गए । पुष्पनन्दी राजा अपनी माता श्रीदेवी का परम भक्त था । प्रतिदिन माता श्रीदेवी जहाँ भी हों वहाँ आकर श्रीदेवी के चरणों में प्रणाम करके शतपाक और सहस्रपाक तैलों की मालिश करवाता था । अस्थि को सुख देने वाले, माँस को सुखकारी, त्वचा की सुखप्रद और दोनों को सुखकारी ऐसी चार प्रकार की अंगमर्दन क्रिया से सुखशान्ति पहुँचाता था । सुगन्धित गन्धवर्तक से उद्वर्तन करवाता पश्चात् उष्ण, शीत और सुगन्धित जल से स्नान करवाता, फिर विपुल अशनादि चार प्रकार का भोजन कराता । इस प्रकार श्रीदेवी के नहा लेने यावत् अशुभ स्वप्नादि के फल को विफल करने के लिए मस्तक पर तिलक व अन्य माङ्गलिक कार्य करके भोजन कर लेने के अनन्तर अपने स्थान पर आ चूकने पर और वहाँ पर कुल्ला तथा मुखगत लेप को दूर कर परम शुद्ध हो सुखासन पर बैठ जाने के बाद ही पुष्पनन्दी स्नान करता, भोजन करता था । तथा फिर मनुष्य सम्बन्धी उदार भोगों का उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करता था।
तदनन्तर किसी समय मध्यरात्रि में कुटुम्ब सम्बन्धी चिन्ताओं में उलझी हुई देवदत्ता के हृदय में यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि 'इस प्रकार निश्चय ही पुष्पनन्दी राजा अपनी माता श्रीदेवी का 'यह पूज्या है' इस बुद्धि से परम भक्त बना हुआ है । इस अवक्षेप के कारण मैं पुष्पनन्दी राजा के साथ पर्याप्त रूप से मनुष्य सम्बन्धी विषयभोगों का उपभोग नहीं कर पाती हूँ । इसलिए अब मुझे यही करना योग्य है कि अग्नि, शस्त्र, विष या मन्त्र के प्रयोग से श्रीदेवी को जीवन से व्यारोपित करके महाराज पुष्पनन्दी के साथ उदार-प्रधान मनुष्य सम्बन्धी विषय-भोगों का यथेष्ट उपभोग करूँ ।' ऐसा विचार कर वह श्रीदेवी को मारने के लिए अन्तर, छिद्र और विवर की प्रतीक्षा करती हुई विहरण करने लगी।
तदनन्तर किसी समय स्नान की हुई श्रीदेवी एकान्त में अपनी शय्या पर सुखपूर्वक सो रही थी। इधर लब्धावकाश देवदत्ता भी जहाँ श्रीदेवी थी वहाँ पर आती है । स्नान व एकान्त में शय्या पर सुखपूर्वक सोई हुई श्रीदेवी को देखकर दिशा का अवलोकन करती है । उसके बाद जहाँ भक्तगृह था वहाँ पर जाकर लोहे के डंडे को
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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