Book Title: Agam 11 Vipak Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 47
________________ आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक अध्ययन-२- भद्रनंदी सूत्र-३८ द्वितीय अध्ययन की प्रस्तावना पूर्ववत् समझना । हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में ऋषभपुर नाम का नगर था । वहाँ स्तूपकरण्डक उद्यान था । धन्य यक्ष का यक्षायतन था । वहाँ धनावह राजा था । सरस्वती रानी थी । महारानी का स्वप्न-दर्शन, स्वप्न कथन, बालक का जन्म, बाल्यावस्था में कलाएं सीखकर यौवन को प्राप्त होना, विवाह होना, दहेज देना और ऊंचे प्रासादों में अभीष्ट उपभोग करना, आदि सभी वर्णन सुबाहुकुमार ही की तरह जानना चाहिए । अन्तर केवल इतना है कि बालक का नाम 'भद्रनन्दी' था । उसका श्रीदेवी प्रमुख पाँच सौ देवियों के साथ विवाह हुआ । महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, भद्रनन्दी ने श्रावकधर्म अंगीकार किया । पूर्वभवमहाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुण्डरीकिणी नाम की नगरी में विजय नामक कुमार था । उसके द्वारा भी युगबाहु तीर्थंकर को प्रतिलाभित करना-उससे मनुष्य आयुष्य का बन्ध होना, यहाँ भद्रनन्दी के रूप में जन्म लेना, यह सब सुबाहुकुमार की तरह जान लेना । यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, मुक्त होगा, निर्वाण पद को प्राप्त करेगा व सर्व दुःखों का अन्त करेगा । निक्षेप पूर्ववत् । अध्ययन-२-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण अध्ययन-३ - सुजातकुमार सूत्र-३९ हे जम्बू ! वीरपुर नगर था । मनोरम उद्यान था । महाराज वीरकृष्णमित्र थे । श्रीदेवी रानी थी । सुजात कुमार था । बलश्री प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राज-कन्याओं के साथ सुजातकुमार का पाणिग्रहण हुआ । भगवान महावीर पधारे । सुजातकुमार ने श्रावक-धर्म स्वीकार किया । पूर्वभव वृत्तान्त कहा-इषुकार नगर था । वहाँ ऋषभदत्त गाथापति था । पुष्पदत्त सागर अनगार को निर्दोष आहार दान दिया, शुभ मनुष्य आयुष्य का बन्ध हुआ । आयु पूर्ण होने पर यहाँ सुजातकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ यावत् महाविदेह क्षेत्र में चारित्र ग्रहण कर सिद्ध पद को प्राप्त करेगा। अध्ययन-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 47

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