Book Title: Agam 11 Vipak Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 12
________________ आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक उन पुरुषों के मध्य में भगवान गौतम ने एक और पुरुष को देखा जिसके हाथों को मोड़कर पृष्ठभाग के साथ रस्सी से बाँधा हुआ था। जिसके नाक और कान कटे हुए थे। जिसका शरीर स्निग्ध किया गया था। जिसके कर और कटि-प्रदेश में वध्य पुरुषोचित्त वस्त्र-युग्म धारण किया हुआ था । हाथ जिसके हथकड़ियों पर रखे हुए थे जिसके कण्ठ में धागे के समान लाल पुष्पों की माला थी, जो गेरु के चूर्ण से पोता गया था, जो भय से संत्रस्त, तथा प्राणों को धारण किये रखने का आकांक्षी था, जिसको तिल-तिल करके काटा जा रहा था, जिसको शरीर के छोटे-छोटे माँस के टुकड़े खिलाए जा रहे थे । ऐसा वह पापात्मा सैकड़ों पत्थरों या चाबुकों से मारा जा रहा था। जो अनेक स्त्री-पुरुष-समुदाय से घिरा हुआ और प्रत्येक चौराहे आदि पर उद्घोषित किया जा रहा था । हे महानुभावो! इस उज्झितक बालक का किसी राजा अथवा राजपुत्र ने कोई अपराध नहीं किया, किन्तु यह इसके अपने ही कर्मों का अपराध है, जो इस दुःस्थिति को प्राप्त है। सूत्र-१३ तत्पश्चात् उस पुरुष को देखकर भगवान् गौतम को यह चिन्तन, विचार, मनःसंकल्प उत्पन्न हुआ कि'अहो! यह पुरुष कैसी नरकतुल्य वेदना का अनुभव कर रहा है। ऐसा विचार करके वाणिजग्राम नगर में उच्च, नीच, मध्यम घरों में भ्रमण करते हुए यथापर्याप्त भिक्षा लेकर वाणिजग्राम नगर के मध्य में से होते हुए श्रमण भगवान महावीर के पास आए । भिक्षा दिखलाई भगवान को वन्दना-नमस्कार करके उनसे इस प्रकार कहने लगेहे प्रभो ! आपकी आज्ञा से मैं भिक्षा के हेतु वाणिजग्राम नगर में गया । वहाँ मैंने एक ऐसे पुरुष को देखा जो साक्षात् नारकीय वेदना का अनुभव कर रहा है । हे भगवन् ! वह पुरुष पूर्वभव में कौन था? जो यावत् नरक जैसी विषम वेदना भोग रहा है ? हे गौतम ! उस काल तथा उस समय में इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरतक्षेत्र में हस्तिनापुर नामक एक समृद्ध नगर था । उस नगर का सुनन्द नामक राजा था । वह हिमालय पर्वत के समान महान् था । उस हस्तिनापुर नामक नगर के लगभग मध्यभाग में सैकड़ों स्तम्भों से निर्मित सुन्दर, मनोहर, मन को प्रसन्न करने वाली एक विशाल गोशाला थी । वहाँ पर नगर के अनेक सनाथ और अनाथ, ऐसी नगर की गायें, बैल, नागरिक छोटी गायें, भैंसे, नगर के साँड, जिन्हें प्रचुर मात्रा में घास-पानी मिलता था, भय तथा उपसर्गादि से रहित होकर परम सुखपूर्वक निवास करते थे । उस हस्तिनापुर नगर में भीम नामक एक कूटग्राह रहता था । वह स्वभाव से ही अधर्मी व कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था । उस भीम कूटग्राह की उत्पला नामक भार्या थी जो अहीन पंचेन्द्रिय वाली थी। किसी समय वह उत्पला गर्भवती हई । उस उत्पला नाम की कूटग्राह की पत्नी को पूरे तीन मास के पश्चात् इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ वे माताएं धन्य हैं, पुण्यवती हैं, कृतार्थ हैं, सुलक्षणा हैं, उनका ऐश्वर्य सफल है, उनका मनुष्यजन्म-जीवन भी सार्थक है, जो अनेक अनाथ या सनाथ नागरिक पशुओं यावत् वृषभों के ऊधस्, स्तन, वृषण, पूँछ, ककुद्, स्कन्ध, कर्ण, नेत्र, नासिका, जीभ, ओष्ठ, कम्बल, जो कि शूल्य, तलित, भृष्ट, शुष्क और लवणसंस्कृत माँस के साथ सुरा, मधु मेरक, सीधु, प्रसन्ना, इन सब मद्यों का सामान्य व विशेष रूप से आस्वादन, विस्वादन, परिभाजन तथा परिभोग करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं । काश ! मैं भी अपने दोहद को इसी प्रकार पूर्ण करूँ । इस विचार के अनन्तर उस दोहद के पर्ण न होने से वह उत्पला नामक कटग्राह की पत्नी सखने लगी, भखे व्यक्त के समान दीखने लगी, माँस रहित-अस्थि-शेष हो गयी, रोगिणी व रोगी के समान शिथिल शरीर वाली, निस्तेज, दीन तथा चिन्तातुर मुख वाली हो गयी । उसका बदन फीका तथा पीला पड़ गया, नेत्र तथा मुख-कमल मुा गया, यथोचित पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माल्य-फूलों की गूंथी हई माला-आभूषण और हार आदि का उपभोग न करनेवाली, करतल से मर्दित कमल को माला की तरह म्लान हुई कर्तव्य व अकर्तव्य के विवेकरहित चिन्ता-ग्रस्त रहने लगी। इतने में भीम नामक कूटग्राह, जहाँ पर उत्पला नाम की कूटग्राहिणी थी, वहाँ आया और उसने आर्तध्यान ध्याती हुई चिन्ताग्रस्त उत्पला को देखकर कहने लगा-'देवानुप्रिये ! तुम क्यों इस तरह शोकाकुल, हथेली पर मुख मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 12

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