Book Title: Agam 11 Vipak Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ आगम सूत्र ११, अंगसूत्र-१, 'विपाकश्रुत' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/ सूत्रांक [११] विपाकश्रुत अंगसूत्र-११- हिन्दी अनुवाद * श्रुतस्कन्ध-१* अध्ययन-१ - मृगापुत्र सूत्र -१ उस काल तथा उस समय में चम्पा नाम की एक नगरी थी । उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के शिष्य-जातिसम्पन्न यावत् चौदह पूर्वो के ज्ञाता, चार ज्ञान के धारक, पाँच सौ अनगारों से घिरे हुए सुधर्मा अनगार-मुनि क्रमशः विहार करते हुए चम्पानगरी के पूर्णभद्र नामक चैत्य-उद्यान में विचरने लगे । धर्मकथा सूनने के लिए जनता वहाँ आई । धर्मकथा श्रवण कर और हृदय में अवधारण कर जिस ओर से आई थी उसी ओर चली गई । उस काल उस समय में आर्य सुधर्मास्वामी के शिष्य जम्बूस्वामी थे, जो सात हाथ प्रमाण शरीर वाले तथा गौतमस्वामी के समान थे । यावत् बिराजमान हो रहे हैं । तदनन्तर जातश्रद्ध यावत् जिस स्थान पर आर्य सुधर्मा स्वामी बिराजमान थे, उसी स्थान पर पधार गए । तीन बार प्रदक्षिणा करने के पश्चात् वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार बोलेसूत्र- २,३ हे भगवन् ! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने प्रश्नव्याकरण नामक दसवें अङ्गका यह अर्थ प्रतिपादित किया है तो विपाकश्रुत नामक ग्यारहवे अङ्ग का यावत् क्या अर्थ प्रतिपादित किया है ? तदनन्तर आर्य सुधर्मास्वामी ने श्री जम्बू अनगार को इस प्रकार कहा-हे जम्बू ! मोक्षसंलब्ध भगवान श्री महावीर स्वामी ने विपाकश्रुत नामके ग्यारहवे अङ्ग के दो श्रुतस्कन्ध प्रतिपादित किए हैं, जैसे कि-दुःखविपाक और सुखविपाक । हे भगवन् ! यदि मोक्ष को उपलब्ध श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने विपाकश्रुत संज्ञक एकादशवे अङ्ग के दुःखविपाक और सुखविपाक नामक दो श्रुतस्कन्ध कहे हैं, तो हे प्रभो ! दुःखविपाक नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध के कितने अध्ययन प्रतिपादित किए हैं ? तत्पश्चात् आर्य सुधर्मास्वामी ने अपने अन्तेवासी श्री जम्बू अनगार को इस प्रकार कहा-हे जम्बू ! दुःखविपाक के दस अध्ययन फरमाये हैं, जैसे कि- मृगापुत्र, उज्झितक, अभग्नसेन, शकट, बृहस्पति, नन्दिवर्धन, उम्बरदत्त, शौरिकदत्त, देवदत्ता और अञ्जू । सूत्र -४ __अहो भगवन् ! यदि धर्म की आदि करने वाले, तीर्थप्रवर्तक मोक्ष को समुपलब्ध श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने दःखविपाक के मगापत्र से लेकर अञ्ज पर्यन्त दस अध्ययन कहे हैं तो, प्रभो ! दार्खा अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल उस समय में मृगाग्राम नाम का एक नगर था । उस नगर के बाहर ईशान कोण में सब ऋतुओं में होने वाले फल पुष्प आदि से युक्त चन्दन-पादप नामक एक उपवन था । उस उद्यानमें सुधर्मा नामक यक्ष का एक पुरातन यक्षायतन था जिसका वर्णन पूर्णभद्र यक्षायतन की तरह समझ लेना । सूत्र-५ उस मृगाग्राम नामक नगर में विजय नामका एक क्षत्रिय राजा था । उसकी मृगा नामक रानी थी । उस विजय क्षत्रिय का पुत्र और मृगा देवी का आत्मज मृगापुत्र नामका एक बालक था । वह बालक जन्म के समय से ही अन्धा, गूंगा, बहरा, लूला, हुण्ड था । वह वातरोग से पीड़ित था । उसके हाथ, पैर, कान, आँख और नाक भी न थे । इन अंगोपांगों का केवल आकार ही था और वह आकार-चिह्न भी नाम-मात्र का था । वह मृगादेवी गुप्त भूमिगृह में गुप्तरूप से आहारादि के द्वारा उस बालक का पालन-पोषण करती हुई जीवन बिता रही थी । उस मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (विपाकश्रुत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 5Page Navigation
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