Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१०
मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए। आचार्यश्री ऊटी ( उटकमण्ट) पधारे। वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बैंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दृष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की बात ठहरी। इस तरह नंदी गिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मातृ-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनूं (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म स्थान भी है।
आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ को हाथ में लिया । कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० श्री के दर्शन प्राप्त हुए । कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे। आचार्यश्री मुग्ध हुए मुनिधी नथमलजी ने फरमाया – “ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है ।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम- सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही
को चैत्र शुक्ला त्रयोदशी २०१३ में लाडनूं में आचार्य दशवैकालिक सूत्र के अपने
१. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण ।
२. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण ।
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३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत आगम ग्रन्थमाला आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण
महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में - ( १ ) दसवेआलियं तह उत्तरज्भयणाणि, (२) आयारो तह आधारचूला, (३) निसीभवणं, (४) उबवाइयं और (५) समयाओ प्रकाशित हुए। रायपसेणइयं एवं सूयगडो ( प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर बे प्रकाशित नहीं हो पाए।
दूसरी ग्रन्थमाला में - (१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्भयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए समवायांग का मुद्रण कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो
पाया ।
तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं: (१) दशर्वकालिक एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन: एक समीक्षात्मक अध्ययन |
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