Book Title: Agam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
२६
www.kobatirth.org
(७६) अकुमारभूए जे केई कुमारभूएत्तहं वए इत्यहिं गिद्धे वसए महामोहं पकुव्वइ (७७) अवभयारी जे केई बंभवारीतहं वए गद्दभेव्य गवां मज्झे दिस्सरं नयई नदं (७८) अप्पणो अहिए वाले मायामोसं बहुं भसे इत्थीविसयहीए महामोहं पकुच्वइ (७९) जं निस्सिए उच्चहइ जससा अहिगमेणं वा तस्स लुभइ वितम्मि महामोहं पकुव्वइ (८०) ईसरेण अदुवा गामेणं अणिस्सरे ईसरीक तस्स संपग्गहीयस्स सिरी अतुलमागया (८१) ईसादोसेण आइट्ठे कलुसाविलचेयसे
जे अंतराय चेएइ महामोहं पकुव्व (८२) सप्पी जहा अंडरडं भत्तारं जो विहिंसइ सेणावई पसत्यारं महामोहं पकुव्वइ (८३) जे नावगं व रट्ठस्स नयारं निगमस्स वा सेट्ठि बहुरवं हंता महामोहं पकुब्व ( ८४) बहुजणास नेयारं दीवं ताणं च पाणिणं एयारिसं नरं हंता महामोहं पकुव्वइ (८५) उचट्ठियं पडिविरयं संजयं सुतवस्सियं वोकम्म धम्माओ भंसे महामोहं पकुव्वइ (८६) तहेवाणंतनाणीणं जिणाणं वरदंसिणं
तेसिं अवण्णवं वाले महामोहं पकुव्व (८७) नेयाउ अस्स मग्गस्स दुट्ठे अवयरई बहुं
तं तिप्पयंतो भावेइ महामोहं पकुव्वइ (८८ ) आयरियउवज्झाएहिं सुयं विषयं च गाहिए ते चैव खिंसई वाले महामोहं पकुव्वइ (८९) आयरियउवज्झायाणं सम्पं नो पडितप्पइ अप्पडिपूयए धद्धे महामोहं पकुब्वइ (९०) अवहुस्सुए व जे केई सुएण पविकत्थइ सज्झायवायं वयइ महामोहं पकुव्वइ (९१) अतवस्सीए य जे केई तवेण पविकत्थइ सव्वलोचपरे तेणे महामोहं पकुब्बइ (९२) साहारणठ्ठा जे केई गिलाणम्पि उवदिए
पभू न कुणई किचं मज्झपि से न पकुब्बइ (९३) सढे नियडीपणाणे कलुसाउलचेयसे अप्पणी य अबोहीए महामोहं पकुव्वइ
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
समवाओ
२९/७६
।। ३२॥-12
।।३३।।-13
३४॥-14
॥३५॥-15
॥३६॥-16
11300-17
॥३८॥-18
॥३९॥-19
॥४०॥-20
118901-21
॥४२॥-22
।।४३।। 23
॥४४॥-24
118411-25
।।४६।। 26
||YU||-27
॥४८11-28
॥४९॥-29

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82