Book Title: Agam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० समवाओ - पइ.-३५६ (३५६) उदए पेढालपुते य पोट्टिले सतएति य मुणिसुब्बए य अरहा सव्वमावविदू जिणे ॥१४८||-73 (३५७) अममे निक्कसाए य निप्पुलाए य निप्ममे चित्तउत्ते समाही य आगमिस्साए होक्खइ ।।१४९||-74 (३५८) संवरे अणियट्ठी य विजए विमलेति व देवोववाए अरहा अनंतविजए ति य 11१५०||-75 (३५९) एए वुत्ता चउवासं भरहे यासम्मि केवली आगमेस्साण होखंति धमतित्थस्स देसगा। ।।१५१/-76 (३६०) एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं पुवाविया चउवीसं नामधेना भविस्संति (तं जहा)- १५९-४1-159-4 (३६१) सेणिय सुपास उदए पोट्टिल अणगारे तह दढाऊ य कत्तिय संखे य तहा नंद सुनंदे सतए य बोद्धव्या ५२11-77 (३६२) देवई वेव समय तह वासुदेव बलदेवे रोहिणि सुलसा चेव तत्तो खल रेवई चेव ॥१५३||-78 (३६३) तत्तो हवइ मिगाली वौद्धब्वे खत्तु तहा भयाली य दीवायणे य कण्हे तत्तो खलु नारएचेव ॥१५४||-79 (३६४) अंबडे दारुमडे य साई बुद्धे य होइ बोद्धव्वे उस्सप्पिणी आगमेस्साए तित्थगराणं तु पुन्वभवा ॥१५५||-80 (३६५) एतेसि णं चउर्वासाए तित्थयराणं चरवासं पियरो भविस्संति चउवीसं मायरो भविस्सति चउवीसं पढमसीसा भविस्संति चउदीसं पढ़मसिस्सिणीओ भविरसंति चवीस पढमभिक्खादा भविस्संति चवीसं चेइवरुक्खा भविस्संति, जंबुद्दीवे णं दीये भरहे वासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए वारस चक्कवट्टी भविस्संति (तं जहा) - ११५९-५/-159-5 (३६६) भरहे य दीहदंते गूढदंते य सुद्धदंते य सिरिउते सिरिभूई सिरिसोमे य सत्तमे (३६७) पउमे य महापउपे विमलवाहणे विपुलवाहणे चेव रिद्वे वारसमे चुत्ते आगमेसा भरहाहिया ॥१५७।-82 (३६८) एएसि णं वारसण्हं चक्कवट्टीणं बारस पिवरो भविस्संति बारस मायरो भविस्सति बारस इत्थीरयणा भविस्संति जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए नव बलदेव-वासुदेव-पियरो भविस्संति नव वासुदेवमायरो भविस्संति नव बलदेवमायरो भविस्संति नव दसारमंडला भविस्संति तं जहा-उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंती तेयंसो एवं सो चेव वण्णओ भाणियव्यो जाव नीलग-पीतगवसणा वेदवे रामकेसवा भायरो भविस्संति (तं जहा)- |१५९-६।-1596 (३६९) नंदे य नंदमित्ते दीहवाहू तहा महाबाहू अइवले महाबले बलभद्दे य सत्तमे ||१५८||-83 (३७०) दुविठू य तिविट्टू य आगमेसाण वण्हिणो जयंते विजए भद्दे सुप्पभे य सुदंसणे आणंदे नंदणे पउमे संकरिसणे य अपच्छिमे।।१५९।।-84 ||१५६-81 For Private And Personal Use Only

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