Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 183
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir |दीहवेयड्ढा अट्ठ तिमिसगुहाओ अट्ठ खंडगम्पवातगुहा अट्ठ कयमालगा देवा अट्ठ गट्टमालगा देवा अट्ठ गंगाकुंडा अट्ठ सिंधुकुंडा अट्ठ गंगातो अट्ठ सिंधूओ अट्ठ उसभकूडा पव्वता अव उसभकूडा देवा पं० १५ जंबूमंदरपुरच्छिमेणं सीताते महानतीते दाहिणेणं अट्ठ |दीहवेअड्ढा एवं चेव जाव अट्ठ उसभकूडा देवा पं०, नवरमेत्थ रत्तारत्तावतीतो तांसि चेव कुंडा १६ जंबूमंदरपच्चच्छिमेणं सीतोताए महानदीते दाहिणेणं अट्ठ दीहवेयड्ढा जाव अट्ठ नट्टमालगा देवा अट्ठ गंगाकुंड । अट्ठ सिंधुकुंडा अट्ठ गंगातो अट्ठ सिंधूओ अट्ठ उसभकूडपव्वता अट्ठ उसकूडा देवा पं० १७ जंबूमंदरपच्चत्थि० सीओताते महानतीते उत्तरेणं अट्ठ दीहवेयड्ढा जाव अट्ठ नट्टमालगा देवा अट्ठ रतकुंडा अठ्ठ रत्तावतीकुंडा अट्ठ रत्ताओ जाव अट्ठ उसभकूडा देवा पं० १८ । ६३९ | मंदरचूलिया णं बहुमज्झदेस भाते अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं पं० १९ । ६४० । धायइसंडदीवे पुरत्थिमद्धेणं धायतिरुक्खे अट्ठ जोयणाई उड्ढउच्चत्तेणं पं० बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं साइरेगाई अट्ठ जोयणाई सव्वग्गेणं पं० एवं धायइरुक्खातो आढवेत्ता सच्चेव जंबुदीववत्तव्वता भाणियव्वा जाव मंदरचूलियत्ति, एवं पच्चच्छिमद्धेऽवि महाधाततिरुक्खातो आढवेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति, एत पुक्खर वरदीवड्ढपुरच्छिमद्धे ऽवि पउमरुक्खाओ आढवेत्ता जाव मंदर चूलियति, एवं पुक्खरवर दीवपच्चत्थि० महापउमरुक्खातो जाव मंदर चूलितत्ति । ६४१ । जंबुदीवे २ मंदरे पव्वते भद्दसालवणे अट्ठ दिसाहत्यिकूडा पं०त० - पउमुत्तर नीलवंते सुहत्थि अंजणागिरी कुमुते य । पलासते वडिंसे ( अट्ठमए) रोयणागिरी ॥ ९४ ॥ १ जंबुदीवस्स णं दीवस्स जगती अट्ठ जोयणाई उड्ढउच्चत्तेणं ॥ श्रीस्थानाङ्ग सूत्रं ॥ १७२ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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