Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandie जीवे गगणे वाते यसारए सलिले । पुक्खरपत्ते कुंभे विहगे खग्गे यभारंडे ॥१३८ ॥ कुंजर वसहे सीहे नगराया चेव सागरमखोभा चंदे सूरे कणगे वसुंधरा चेव सुहुयहए ॥१३९ ॥ नत्थि णं तस्स भगतवंस कत्थइ पडिबंधे भवइ, से य पडिबंधे चविहे पं०२०अंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहिएइ वा पगहिएइ वा, जंणं जंणं दिसंइच्छइ तंणं तंणं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणण्यगंथे| संजमेणं तवसा अप्याणं भावेमाणे विहरिस्सइ, तस्सणं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुरेणं दंसणेणं अणुत्तरेणं चरिएणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेमद्दवेलाघवेखंतीभुत्तीगुत्तीसच्चसंजमतवगुणसुचरियसोवचियफलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्याणं भावमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणते अणुत्तरे निव्वाधाए जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिंति, तए णं से भगवं अहा जिणे भविस्सइ, केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणुआसुरस्स लोगस्स परियागंजाणइ पासइ सव्वलोए सव्वजीवाणं आगई गति ठियं चयणं उववायं तकं मणोमाणसियं भुत्तं कडं परिसेवियं आवीकम्भ रहोम्म अहा अरहस्स भागीतं तं कालं मणसवयसकाइए जोगे वट्टमााणं सव्वलोए सव्सजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ, तए णसे भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणंसदेवमणुआसुरं लोगं अभिसभिच्चासमणाणं निगंथाणं (प्र० सेणं भगवं जंचेव दिवसं मुंडे भवित्ता जावपव्व्याहि तं चेव दिवसंसयमेतारूवमभिग्गह अभिगिहिहिति जे केइ उक्सग्गा उपजति, तं० -दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा ते उप्पन्ने सम्म सहिस्सइ खभिस्सइ तितिक्खिस्सइ अहियासिस्सइ, ततेणं से भगवं अणगारे भविस्सति ईरियासमिते भास० एवं जहावद्धमाणसामी तं चेव निरवसेसंजाव | ॥ श्रीस्थानाङ्ग सूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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