Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 199
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir णम्गभावं जावलद्धावलद्धवित्ती पण्णवेहिती,से जहाणामए अज्जो ! भए समानिक आधाकभ्भिएतिवा उद्देसितेतिवामीसज्जाएति वा अझोयरएति वा ५ पूतिए० कीते० पामिच्चे० अच्छेज्जे० अणिसट्टे० अभिहडेति वा कंतारभत्तेति वा दुब्भिक्खभत्ते० गिलाणभत्ते० वदलिताभत्तेइ वा पाहुणभत्तेइ वा मूलभोयणेति वा कंदभो० फलभो० बीयभो० हरियभोयणेति वा पडिसिद्ध एवामेव महापउमेऽवि अरहा सभणाणं० आधाकम्मितं वा जाव हरितभोयणं वा पडिसेहिस्सति, से जहानामते अजो! भए समणाणं० पंचमहव्वतिए सपडिक्कमणे अचेलते धमे पण्णत्ते एवामेव महापउमेऽवि अहासमणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतितंजाव अचेलगंधमं पण्णवेहिती, से जहानाभए अजो! मए पंचाणुव्वतिते सत्तसिक्खावतिते दुवालसविधेसावगम्मे पं० एवामेव महापउमेऽवि अहा पंचाणुव्वतितं चाव सावगधम्म पण्णवेस्सति,से जहानामते अज्जो! मए सभणाणं० सेज्जातरपिंडेति वारायपिंडेति वा पडिसिद्ध एवामेवमहापउमेऽविअहासमणाणं० सेज्जातरपिंडेति वा० पडिसेहिस्सति, से जधाणामते अजो! मम णव गणा इगारस गणधरा एवामेव महापउमस्सऽवि अरिहतो णव गणा एगारस गणधरा भविस्संति, से जहानामते अजो! अहं तीसंवासाई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता जाव पव्वतिते दुवालस संवच्छराई तेरस पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहिं पक्खेहिं ऊणगाई तीसं वासाई केवलिपरियागं पाउणित्ता बायालीस वासाई सामण्णपरियागंपाउणित्ता बावत्तरि वासाइंसव्वाउयंपालइत्ता सिज्झिस्संजावसव्वदुक्खाणमंतं रेस्सं एवामेव महापउमेऽवि अहा तीसं वासाई आगारवासमझे वसित्ता जाव पव्वइहिती दुवालस संवच्छाराई जाव बावत्तरि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती ॥ श्रीस्थानाङ्ग सूत्रं ॥ १८८ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221