Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutangsutra Vol 1 Niryukti
Author(s): Bhadrabahuswami, Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 9
________________ (८) सूत्रकृतांगसूत्रनियुक्ति लिखी हुई है। इसके अन्त में लेखकने पुष्पिका लेखन संवत आदि कुछ भी नहीं लिखा है। फिर भी आकार-प्रकार और लिपि के मरोड के आधार से कहा जा सकता है कि यह प्रति विक्रम की सोलहवीं सदी में लिखाई गई हो। कुल पत्र ४४ है। प्रथम पत्र की प्रथम पृष्ठी कोरी है और उसकी दूसरी पृष्ठि से सूत्रकृतांगसूत्र का मूल प्रारंभ होता है। इस द्वितीय पृष्ठिका को देखनेवाले के दक्षिणी भाग में समवसरण का चित्र है। सुनहरी आदि रंगों से आलेखित इस चित्र की लंबाई-चौडाई-१२:५४७.३ सें. मी. है। प्रत्येक पत्र की प्रत्येक पृष्ठि में पंद्रह पंक्तियां है। सामान्यतः प्रत्येक पंक्ति में छप्पन अथवा सत्तावन अक्षर है। किसी पंक्ति में बावन अक्षर भी है। प्रत्येक पत्र की प्रत्येक पृष्ठि के बीच और द्वितीय पृष्ठिका की दोनों ओर के हासिये में 'पु ११ प्रति की तरह शोभन किया है। विशेष इतना ही है कि 'पु१' प्रति में लाल रंग है उसके स्थान पर यहाँ पीला रंग भर कर दोनों और आसमानी कलर में कंगूरे का शोभन बनाया गया है। ३९ वें पत्र की दूसरी पृष्ठि की चौदहवीं पंक्ति में सूत्रकृतांगसूत्र पूर्ण होता है। उसके बाद लेखक ने इस प्रकार शुभकामना लिखी है।-"पद्मोपमं पत्रपरम्परान्वितं वर्णोज्ज्वल सूक्तमरन्दसुन्दरम् । मुमुक्षुभङ्गप्रकरस्य वल्लभ जीयाचिरं सूत्रकृदङ्गपुस्तकम्।। ॥छ। शुभं भवतु ॥ छ॥ छ॥"४० वें पत्र की प्रथम पृष्ठि से ४४ वें पत्र की द्वितीय पृष्ठि की सातवी पंक्ति तक में सूत्रकृतांगसूत्रनियुक्ति लिखी हुई है। उसके बाद यहाँ बताई गई (पत्र ३९ वें के अंत में लिखी हुई) शुभकामना लेखक ने पुनः लिखी है। ८. 'सा'प्रति-आगमोदय समिति द्वारा वि. सं. १९७३ में प्रकाशित 'श्री शीलांकाचार्यविहितविवरणयुतं सूत्रकृतांगसूत्रम् प्रन्थ में मुद्रित सूत्रकृताङ्गसूत्र की मूलवाचना। डॉ पीला रंग होता है। याचिरं सूत्र सूत्रकृतांगसूत्रचूर्णि की प्रतियां प्रस्तुत चूर्णि की पांच प्रतियों में तीन प्रतियां हस्तलिखित हैं। ये तीनों प्रतियां पाटण में श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर के विविध भंडारों की है। पूज्यपाद आगमप्रमाकरजी महाराज के स्वर्गवास के बाद तुरंत ही इन तीनों प्रतियों को पाटण भेज कर उन उन भंडारों में जमा करा दी थी, अतः श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर की मुद्रित ग्रन्थसूचि में से ही इन तीनों प्रतियों का परिचय यहाँ दिया गया है। ९. 'वा'प्रति-श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर-पाटण (उ० गु०) में सुरक्षित अनेक प्राचीनतम ज्ञानभंडारों में से श्री वाडीपार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार की कागज़ पर लिखी गई यह प्रति है। ज्ञानमंदिर की सूचि में इसका क्रमांक ६५४८ है। पत्र १४९ किन्त चालीस के अंकवाले दो पत्र होने से कुल पत्र की संख्या १५० है। इसकी लंबाई-चौडाई १२४४॥ इंच प्रमाण है। इसके अन्त में लेखक की पुष्पिका आदि कुछ भी लिखा हुआ नहीं है। फिर भी आकार-प्रकार से एवं लिपि के आधार से जाना जा सकता है कि यह प्रति विक्रम की पंद्रहवी सदी में लिखाई गई होनी चाहिए । इसकी स्थिति अच्छी है, लिपि सुन्दर है। . इस भंडार की क्रमांक ६५३४ वाली विक्रम संवत १४९४ में लिखाई हुई सूत्रकृतांगसूत्रचूर्णि की प्रति भी पूज्यपाद सम्पादकजी के स्वर्गवासी होने तक उनके पास ही में थी अतः उसका भी यहां उपयोग हुआ ही होगा ऐसा मेरा अनुमान है। १०. 'मो०' प्रति-कागज़ पर लिखाई गई यह प्रति भी उपर्युक्त ज्ञानमंदिर में सुरक्षित श्री मोदी जैन ज्ञानभंडार की है। सूचि में इसका क्रमांक ९९९१ है। पत्रसंख्या १९१ है। लंबाई-चौडाई १३||४५/ इंच प्रमाण है। स्थिति जीर्ण है और लिपि सुन्दर है। अंत में लेखक ने संवत नहीं लिखा है फिर भी तदुचित अनुमान से जाना जा सकता है कि यह प्रति विक्रम की सोलहवीं सदी में लिखाई गई हो। ११. 'सं०' प्रति-कागज़ उपर लिखाई गई यह प्रति उपर्युक्त ज्ञानमन्दिर में सुरक्षित श्री संघ जैन ज्ञानभंडार की है। सचि में इसका क्रमांक ८४३ है। पत्रसंख्या १२५ है। लंबाई-चौडाई १३||४५.१ इंच प्रमाण है। स्थिति अच्छी और लिपि सुन्दर है। अन्त में लेखक की पुष्पिका आदि कुछ भी नहीं होने पर भी तदुचित अनुमानतः इसका लेखन संवत विक्रम का पंद्रहवाँ शतक होना चाहिए। १२. 'म०' प्रति-श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी रतलाम द्वारा वि० सं० १९९८ में प्रकाशित हुई सूत्रकृतांगसूत्रचणि की मुद्रित प्रति । १३. 'पु०' प्रति-इस प्रति का सही निर्णय नहीं हो पाया है। कार्तिक शुक्ला १२. संवत २०३१ विद्वज्जनविनेय अमृतलाल मोहनलाल भोजक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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