Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana Publisher: Padma Prakashan View full book textPage 8
________________ - - |स्वकथ्य आचारांग का महत्त्व वर्तमान में उपलब्ध भगवान महावीर की वाणी का मूल आधार ग्यारह अंगसूत्र है। ग्यारह अंगों में सबसे पहला अंग है आचारांग। आचार्य श्री भद्रबाहु ने लिखा है "सव्वेसिं आयारो तित्थस्स पवत्तणे पढमयाए। सेसाई अंगाइं एकारस आणुपुव्वीए॥" -नियुक्ति, गाथा ८ तीर्थंकर देव तीर्थ प्रवर्तन के समय सर्वप्रथम आचार का उपदेश देते हैं। इसके पश्चात् क्रमशः अन्य अंगों का प्रवचन करते हैं। इसलिए आचारांग पहला अंग है। समस्त जिन प्रवचन का सार मोक्ष है। मोक्ष के लिए धर्म की आवश्यकता है। मोक्ष-प्राप्ति का उपाय-मोक्ष साधना की विधि आचारांग में बताई गई है। आचारांग का आरम्भ आत्मा की जिज्ञासा से होता है। फिर अहिंसा, समता, वैराग्य, अप्रमाद, निस्पृहता, निःसंगता, सहिष्णुता आदि धर्मों का प्रतिपादन है। इस प्रकार मोक्ष-प्राप्ति के सभी अंगों का विशद वर्णन इस सूत्र में विद्यमान है। प्राचीन समय में जब तक दशवैकालिकसूत्र की रचना नहीं हुई थी, नवदीक्षित मुनि की उपस्थापना (बड़ी दीक्षा) तभी की जाती थी जब वह आचारांग का प्रथम अध्ययन पढ़ लेता था तथा आचारांग सूत्र के पिण्डैषणा अध्ययन की वाचना लेने बाद ही मुनि स्वतंत्र रूप में भिक्षाचरी कर सकता था। अन्तरंग परिचय आचारांग के दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध, भाषा, रचना-शैली तथा विषय-वस्त आदि सभी दृष्टियों से विशेष महत्त्वपूर्ण है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में अहिंसा और समता की दृष्टि से व्यापक और सर्व जनोपयोगी विषय है जबकि द्वितीय श्रुतस्कन्ध की विषय-वस्तु साधु के आचार धर्म पर ही केन्द्रित है। भाषा आदि दृष्टियों से भी दोनों में भिन्नता प्रतीत होती है। प्रथम श्रुतस्कन्ध का दूसरा नाम नव ब्रह्मचर्य अध्ययन भी प्रसिद्ध है-'नव बंभचेरा पण्णत्ता'-प्राचीनकाल में ब्रह्मचर्य शब्द व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता था। आत्मा को भी ब्रह्म कहा जाता है। इस कारण आत्मा में रमण करने का नाम भी ब्रह्मचर्य है। प्रथम श्रुतस्कन्ध की समग्र सामग्री आत्मा पर केन्द्रित है, आत्म-रमण की साधना के विविध रूप ही उसमें व्यक्त हुए हैं इसलिए यह माना जाता है कि जब इसका दो श्रुतस्कन्ध के रूप में विभाजन किया गया तो प्रथम श्रुतस्कन्ध 'नव ब्रह्मचर्य अध्ययन' के रूप में तथा दूसरा श्रुतस्कन्ध 'आयारचूला' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। (७ ) - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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