Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 12
________________ साथ-साथ कर दिया है। पहले इसका पारिभाषिक शब्दकोष देने का विचार था। फिर सोचा विवेचन में ही कठिन शब्दों का अर्थ दे देने से पाठकों को तुरन्त अर्थ समझने में सुविधा रहेगी। इसलिए विवेचन में ही कठिन शब्दों की परिभाषाएँ दे दी हैं। अंग्रेजी में भी उन पारिभाषिक शब्दों को इटैलिक में देने से अलग ही दीखते हैं और समझने में सुविधा भी रहेगी। _इस प्रकार मैंने यह अनुवाद-विवेचन न अति संक्षिप्त तथा न अति विस्तृत-किन्तु सुबोध व सार ग्राही बनाने का प्रयास किया है। __ मेरे सहयोगी विद्वान् श्रीचन्द जी सुराना ने इसके संपादन में तथा श्री सुरेन्द्र जी बोथरा ने अंग्रेजी अनुवाद में पूर्ण श्रद्धाभाव के साथ सहयोग किया है। इसी प्रकार चित्रकार सरदार जी ने भी भावों को चित्रित करने में बहुत ही सराहनीय कार्य किया है। अनेक कठिन विषय चित्रों के कारण बहुत सुबोध व रुचिकर बन गये हैं। उत्तर भारतीय प्रवर्तक पूज्य गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज के असीम आशीर्वाद से मैंने आगमों का हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद सहित सचित्र प्रकाशन का कार्य आरम्भ किया था इस योजना के अन्तर्गत अब तक निम्न सूत्र छप चुके हैं: - उत्तराध्ययनसूत्र, अन्तकृद्दशासूत्र, कल्पसूत्र, ज्ञातासूत्र भाग १ तथा २, दशवैकालिकसूत्र, नन्दीसूत्र। अब आचारांग सूत्र प्रथम भाग पाठकों के हाथों में है। मेरी हार्दिक इच्छा है, आगमों का यह सचित्र प्रकाशन निरन्तर चलता रहे और भगवान श्री महावीर की वाणी पाठकों को आत्म-कल्याण का मार्ग दिखाती रहे। मेरे इस कार्य में जो-जो विद्वान्, उदार हृदय श्रावक, गुणज्ञ गुणानुरागी सज्जन सहयोगी बने हैं, बन रहे हैं मैं उन सब के प्रति हृदय से अपना आभार प्रकट करता हूँ। खासकर साध्वीरत्न उपप्रवर्तिनी श्री पवनकुमारी जी महाराज, तपाचार्य श्री मोहनमाला जी महाराज, श्रमणीसूर्या उपप्रवर्तिनी डॉ. श्री सरिता जी महाराज, श्री अजयकुमारी जी महाराज के प्रति। जिनकी प्रेरणा से शास्त्र प्रकाशन कार्य में निरन्तर सहयोग प्राप्त होता रहा है। गुरुभक्त श्री राजकुमार जी जैन, जैनदर्शन व अंग्रेजी भाषा के विद्वान् हैं। उन्होंने निःस्वार्थ भाव से इनके अंग्रेजी प्रूफ पढ़कर संशोधन किया है। उनके सहयोग के प्रति हार्दिक धन्यवाद है तथा श्रुत-सेवा के पवित्र कार्य में तन-मन-धन से सहयोग करने वाले सभी गुरुभक्तों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। -उपप्रवर्तक अमर मुनि ( ११ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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