Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 6
________________ प्रकाशकीय शास्त्र अध्यात्म पुरुषों की अनुभव वाणी है। इसमें हजारों, लाखों वर्षों की तपस्या, साधना, चिन्तन और आत्म-दर्शन. का सार संग्रहीत होता है। इस प्रकार के अध्यात्म शास्त्रों का स्वाध्याय प्रत्येक पाठक के हृदय में ज्ञान का प्रकाश और आत्मानुभूति की संवेदना जगाता है। आचारांग सूत्र जैनदर्शन का आधारभूत शास्त्र है। यह ग्यारह अंगों में प्रथम अंग है और मोक्ष का द्वार है। भगवान महावीर ने आचार धर्म के दो आधारभूत तत्त्व बताये हैं-अहिंसा और संयम। अहिंसा और संयम का आधार है सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र। इन आधारभूत तत्त्वों का विस्तार के साथ सहज भाषा-शैली में वर्णन हुआ है इस आगम में। उत्तर भारतीय प्रवर्तक गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज के सुशिष्य श्री अमर मुनि जी महाराज ने शास्त्रों के हिन्दी अनुवाद विवेचन के साथ अंग्रेजी भाषान्तर एवं सुन्दर चित्रों सहित प्रकाशन का जो विशाल अद्वितीय कार्य प्रारम्भ किया है वह आज देश-विदेश में सर्वत्र प्रशंसा योग्य बन रहा है। इन आगमों से हजारों व्यक्ति लाभ उठा रहे हैं। यह बड़ी प्रसन्नता की बात है। सचित्र आगम प्रकाशन में अब तक हमने छह आगमों का प्रकाशन किया है। अब सातवाँ आगम, आचारांग सूत्र हिन्दी, अंग्रेजी अनुवाद एवं चित्रों के साथ पाठकों के हाथों में प्रस्तुत है। ज्ञातासूत्र दो भागों में प्रकाशित हुआ है, इस कारण यह सचित्र आगम माला का आठवाँ पुष्प है। इस प्रकाशन में सहयोग देने वाले सभी उदार हृदय गुरुभक्तों का हम हृदय से आभार मानते हैं तथा विद्वान् सम्पादक श्रीचन्द जी सुराना, अंग्रेजी अनुवादक श्री सुरेन्द्र बोथरा तथा मँजे हुए चित्रकार सरदार पुरुषोत्तमसिंह जी तथा सरदार हरविन्दरसिंह जी को भी धन्यवाद देते हैं। सभी के सहयोग से यह सुन्दर संस्करण आपके हाथों में पहुंच रहा है। विनीत महेन्द्रकुमार जैन अध्यक्ष पद्म प्रकाशन - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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