Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 12
________________ -- २२९॥ नाश थाय छे.) ए चढनारा पुरुष जेम अग्नि लाकडांने बाळे तेम पोते कर्मरूपी लाकडांने ध्यानरूपी अनिवडे बाळी मुक्याथी। आवरणरूप कर्म नाश थतां निर्मळ (केवळ) ज्ञान प्राप्त थतां देवताओनु आसन कंपतां तेओना आववाथी केवळ ज्ञानी पूज्य पुरुष तरीके पूजाय छे. अने तेज पुरुष ज्ञान वडे सर्व जीवोनुं हीत थवा उपदेश आपे ते तीर्थ छे. तेने करवाथी तीर्थकर नामकर्म उदयमा आवे; 6 अने तेमने सामान्य लोकथी विशेष एवा चोत्रीस अतिशयो प्राप्त थया एवा अंतिम तीर्थंकर वर्धमानस्वामीए (लगभग पचीस्सो र वर्ष उपर) त्यागवा योग्य अने गृहण करवा योग्य पदार्थनो खुलासो करवा देव अने मनुष्यनी सभामां आचारांगसूत्रनो विषय 3 कह्यो. अने ते सांभळी तेमना महान् बुद्धिवाला गणधरो. जेओ अचिंत्य शक्तिना प्रभाववाळा हता. तेवा गौतम इंद्रभूति विगेरेए ते ४ प्रवचन (महान् उपदेशना वाक्यनो समूह) ने सर्वे जीवोना उपकारमाटे तेनी सूत्र रचना करी तेनु नाम आचारांग तरीके प्रसिद्ध थयु. अने आवश्यकनी अंदर रहेलुं चतुर्विशति स्तवनी नियुक्ति तो त्यारपछी हमणांना काळमां थयेला भद्रबाहुस्वामीए कयु छे तेथी ते अयुक्त छे कारण के पूर्व काळमां बनेलं आचारांगनुं व्याख्यान करतां पाछळथी थएल चतुर्विशति स्तवनो अधिकार जोवानुं ४ अथवा कहेवार्नु क्यांथी आवे! आबु कोइ कोमळ बुद्धिवाळा शिष्यने शंकानुं स्थान थाय तेनुं आचार्य समाधान करे छे के आमां a कंइ दोष नथी कारण के आ नियुक्तिनो विषय छे. अने भद्रबाहुस्वामीए प्रथम आवश्यकनी नियुक्ति करी, त्यारपछी आचारांगनी | नियुक्ति करी तेथी तेम थाय. तेमन का छे मूत्र . . " आवस्मयस्स दसकालियस्य तह उत्तरज्झमायारे" 4-4-94GRESEARSE (15ऊवार

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