Book Title: Adhyatma Vicharna
Author(s): Sukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 12
________________ प्रवेश जिस समय अधिकांश लोगोंका ध्यान विशेषकर जीवनस्पर्शी और तात्कालिक निर्णयकी अपेक्षा रखनेवाले आर्थिक, सामाजिक, राजकीय, शारीरिक और ऐसे ही दूसरे विषयों में लगा हो, उस समय स्थूल जीवनके साथ जिसका स्पष्ट सम्बन्ध न हो और कला, साहित्य एवं विज्ञान जैसे सूक्ष्म विषयोंकी कोटिसे भी जो पर माना जाता हो तथा जिज्ञासुको भी जिसकी तत्काल या कुछ सरल रीतिसे प्रतीति शक्य न हो, ऐसे आत्मा-परमात्मा सरीखे एक गूढ़ विषयकी चर्चा व विचारणा लोगोंके सम्मुख उपस्थित करना और ऐसी विचारणाकी ओर लोगोंका मन मोड़नेका प्रयत्न करना कहाँतक ठीक है ?-ऐसा प्रश्न सहज ही उपस्थित हो सकता है। इसका उत्तर दिये बिना आत्मा-परमात्माकी विचारणामें आगे बढ़ना मानो इस प्रश्नको एक तरहसे टालना है। पहली बात तो यह है कि कोई भी विशेष अभ्यासी अपनी खास पसन्दगीके विषयका अभ्यास करते समय उसके मूल्यांकनकी कसौटी यदि यही रखे कि वह विषय लोगोंको अच्छा लगे अथवा जल्दी समझमें आ जाय ऐसा होना चाहिये और साथ ही वह ऐसा भी होना चाहिये जो हमारी तात्कालिक आवश्यकताकी पूर्ति कर सके, तो अध्ययनके विषयोंमें बहुतसे महत्त्वके विषयोंका समावेश ही न हो सकेगा; और ऐसा हो तो आजतक मानवजातिने चिन्तन, मनन एवं संशोधनके प्रदेशमें जो बहुमूल्य योगदान दिया है वह हमें कदापि प्राप्त न होता। मानव-स्वभाव

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