Book Title: Adhyatma Sara
Author(s): Yashovijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 3
________________ ●अध्यात्मसार अधिकार पहला -: अध्यात्म का माहात्म्य : ऐन्द्र श्रेणिनतः श्रीमान्नन्दतान्नाभिनन्दनः । उद्दघार युगादौ यो जगदज्ञानपङ्कतः ॥१॥ भावार्थ : जिन्होंने युग के प्रारम्भ में अज्ञानरूप कीचड़ से जगत् को उबारा है; अर्थात् सूर्य के समान जिन्होंने अपने ज्ञान के प्रकाश से जगत् के अज्ञानान्धकार को मिटाया है; वे इन्द्रसमूह द्वारा नमस्कृत श्रीनाभिनन्दन ऋषभदेव भगवान् (मुझ पर) आनन्दित (प्रसन्न ) हों ॥१॥ श्री शान्तिस्तान्तिभिद् भूयाद् भविनां मृगलांछनः । गावः कुवलयोल्लासं कुर्वते यस्य निर्मलाः ॥ २ ॥ भावार्थ : जिनकी निर्मलवाणी सूर्यकिरणों की तरह भव्यजीवरूपी कमलों को प्रफुल्लित करती है, वे मृगलांछन श्रीशान्तिनाथ भगवान् भव्यजीवों के दुःखों का अन्त करें ॥२॥ अधिकार पहला ३

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