Book Title: Adhyatma Geeta
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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जिनाज्ञातो विरुद्धं यन्मतिभ्रान्त्याच दूषणम् । भासते योग्यबुद्ध्या तच्छोधनीयं च सजनैः ॥२५३॥ चन्द्रर्तुनिधिचन्द्रांक १९६१ मिते वैक्रमवत्सरे । माघशुक्लदशम्यां तु ग्रन्थः पूर्तिमगादयम् ॥२५॥ नान्यथा तत्स्वरूपं हि सिद्धरूपं सनातनम्। बुद्धिसागर प्राप्नोति चित्स्वरूपं सुमङ्गलम् ॥२५५॥ पद्मावती पार्श्वयचो धरणेन्द्रो गुणालयः। शंखेशपार्श्वनाथो वः कुर्वन्तु मङ्गलं सदा ॥२५६॥
इति श्री आत्मस्वरूपग्रन्थः
समाप्तः
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