Book Title: Abhishek
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Pathshala Prakashan Surat

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ जैसी दया हो भगवन् ! जब प्राण तन से नीकले ... गिरिराज की हो छाया, मनमें न होवे माया; तप से हो शुद्ध काया, जब प्राण तन से नीकले...१ उर में न मान होवे, दिल में ओक तान होवे; तुम चरण-ध्यान होवे, जब प्राण तन से नीकले...२ संसार-दुःख हरणां, जैनधर्म का हो शरणां; हो कर्म-भर्म खरणां, जब प्राण तन से नीकले...३ अनशन हो, सिद्धवट हो, प्रभु आदिदेव घट हो; गुरुराज भी निकट हो, जब प्राण तन से नीकले...४ यह दान मुजको दीजिओ, इतनी दया तो कीजे; अरजी तिलक की लीजे, जब प्राण तन से नीकले...५ આ રીતે શ્રી રજનીકાન્ત દેવડી એક પૂર્ણ અનુષ્ઠાન કરી મોક્ષને જરૂર સમીપ લાવી શક્યા હશે એવું માનવું गछ. ગિરિરાજ અને દાદાના અભિષેકથી શ્રી રજનીકાન્ત દેવડી અમર થઈ ગયા. અભિષેક: ૫૮ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114