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आत्मा ही है शरण
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चापलूसी करने से क्या होता है, पद तो तभी तक सुरक्षित है, जबतक जनता जनार्दन चाहेगी ।
बस, इतना विवेक जागृत होते ही, श्रद्धा पलटते ही छात्र प्राध्यापकों के घर के चक्कर नहीं काटेंगे, पढ़ेंगे; लिपिक अधिकारियों की गुलामी नहीं करेंगे, काम करेंगे; व्यापारी भी बेईमानी न करेंगे, ईमानदारी से व्यापार करेंगे और मुख्यमन्त्री दिल्ली में ही नहीं जमे रहेंगे, अपने प्रान्त में ही रहकर जनता की सेवा करेंगे; उनकी समस्यायें सुनेंगे, समझेंगे, सुलझायेंगे । जिस दिन ऐसा होगा, उस दिन देश का नक्शा बदल जायेगा ।
इसीप्रकार जबतक यह आत्मा यह मानता रहेगा कि मैं दूसरों को मारता हूँ, सुखी-दुखी करता हूँ या दूसरे मुझे मारते हैं, वचाते हैं, सुखी-दुखी करते हैं; तबतक दूसरों से राग-द्वेष-मोह भी करता रहेगा । ___ कर्तृत्व के अभिमान में ग्रस्त यह आत्मा या तो दूसरों को डरायेगा, धमकायेगा; उन्हें अपने आधीन रखना चाहेगा; नहीं रहने पर स्वयं खेद-खिन्न होगा, दुखी होगा, संतप्त होगा और तनावग्रस्त हो जायेगा या फिर पराधीनता की वृत्ति से दूसरे से डरेगा, उनकी चापलूसी करेगा, उनकी गुलामी करेगा, उनके प्रसन्न न होने पर खेद-खिन्न होगा और दीन-हीन होकर तनावग्रस्त हो जायेगा । __ पर यदि यह आत्मा आचार्य कुन्दकुन्द के निर्देशानुसार यह स्वीकार करले, यह श्रद्धान करले कि न तो मैं किसी को मार-बचा सकता हूँ और न सुखी-दुखी ही कर सकता हूँ तथा न अन्य कोई मुझे मार-बचा सकता है, न सुखी-दुखी ही कर सकता है तो सर्वप्रकार के तनावों से मुक्त हो जायेगा, सहज हो जायेगा, सरल हो जायेगा; सर्वप्रकार से निश्चिन्त हो जायेगा ।
कुछ लोग कहते हैं कि जनसामान्य के सामने इस परमसत्य का उद्घाटन करके आचार्यदेव उनसे क्या अपेक्षा करते हैं ? तात्पर्य यह है कि उनके इस प्रतिपादन का जन-सामान्य को क्या लाभ है ?