Book Title: Aatma hi hai Sharan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 216
________________ आत्मा ही है शरण 210 उन्होंने हमसे कहा कि मैं आपसे क्रमबद्धपर्याय समझना चाहता हूँ; अतः आपको मेरे घर पर दो-तीन दिन और ठहरना होगा । पर आगे के कार्यक्रम सुनिश्चित होने से यह सब संभव नहीं था; पर वे कुछ मानने को तैयार ही न थे; अतः असंभव को संभव बनाने में जुट गये और उनकी भावना सफल भी हो गई । लासएंजिल्स से ३५ व्यक्ति जैना के सम्मेलन में भाग लेने लाये थे। हमें उन्हीं के साथ कार द्वारा लासएंजिल्स जाना था । वहाँ से कार का रास्ता दस-ग्यारह घटे का था । घूमते हुए जाने के कारण एक दिन से अधिक समय लगने की संभावना थी । अतः लासएजिल्स के कार्यक्रम में इसीप्रकार की गुंजाइश रखी गई थी । इसका लाभ उठाते हुए उन्होंने कहा कि यह समय हमें दे दिया जाए, हम आपको प्लेन से यथासमय लासएंजिल्स पहुँचा देंगे । इसप्रकार उन्होंने डेढ़ दिन का समय प्राप्त कर लिया । इतने से समय में भी उन्होंने ७ घटे के प्रवचन व तत्त्वचर्चा के कार्यक्रम । कराये । लाभ लेने के लिए शताधिक व्यक्तियों को आमंत्रित किया। सभी लोग पूरे दिन लाभ ले सकें - इस भावना से उनके भोजन की व्यवस्था भी स्वयं अपने घर पर ही की । सभी कार्यक्रमों के वीडियो और ओडियो कैसेट तैयार किये । उनकी कॉपियाँ कर अनेक लोगों तक पहुँचाई, एक-एक कॉपी हमें भी प्रदान की ।। इसप्रकार क्रमबद्धपर्याय का सर्वांग विवेचन तो हुआ ही, चर्चा भी भरपूर हुई । उनकी रुचि तीव्र और मार्ग में व्यर्थ बर्बाद होनेवाले समय का इतना सुन्दर सदुपयोग देखकर हमारा चित्त भी प्रफुल्लित था; अतः इतना अधिक बोलने पर हमें कोई थकान का अनुभव नहीं हुआ । सान्फोसिस्को से ८ जुलाई, १९९१ को लासएंजिल्स पहुँचे । वहाँ चार दिन का कार्यक्रम था । चारों ही दिन शाम के प्रवचन जैनमंदिर के विशाल

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