Book Title: Aatma hi hai Sharan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 215
________________ जैनभक्ति और ध्यान का अध्ययन दो बार हो चुका है । उनकी भावना आगामी वर्ष भी अध्ययन के लिए यहाँ आने की है । 209 लेने आये थे, वे हमसे हमें जो भाई सान्फ्रांसिस्को में हवाई अड्डे पर पूर्णतः अपरिचित थे, हम भी उन्हें नहीं जानते थे । यद्यपि वे अध्यात्मिक रुचि के अन्तर्मुखी व्यक्ति थे और हम भी सान्फ्रांसिस्को सातवीं बार पहुँच रहे थे; तथापि न जाने क्यों वे हमसे अपरिचित रह गये थे । हमें उनके यहाँ ही ठहरना था । उन्होंने हमें हमारी वेशभूषा से ही पहिचाना । उन्होंने हमें रास्ते में ही बताया कि उन्होंने जैनावालों को कहा था कि हमारे यहाँ किसी आध्यात्मिक व्यक्ति को ही ठहराना । जव जैनावालों ने उन्हें हमारा नाम बताया तो अपरिचित होने से पहले तो वे अचंभित रह गये, पर बाद में उन्हें कुछ याद आया कि यह नाम तो परिचित - सा लगता है । उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि इनकी किसी पुस्तक को मैंने अवश्य पढ़ा है । अतः उन्होंने अपने पुस्तकालय को देखा तो उन्हें याद आ गया कि नियमसार पर लिखी गई मेरी प्रस्तावना का स्वाध्याय उन्होंने कुछ ही दिन पूर्व किया था । उन्होंने अत्यन्त प्रसन्नता से अपनी पत्नी शारदा बैन को यह बात बताई कि अपने यहाँ नियमसार की प्रस्तावना के लेखक ठहरने आ रहे हैं और उसीसमय उस प्रस्तावना को पत्नी के साथ बैठकर दुबारा पढ़ा । यह बात बताकर उन्होंने रास्ते में ही कुछ आध्यात्मिक रहस्य जानने की भावना व्यक्त की । यह जानकर हमें भी अत्यंत प्रसन्नता हुई कि हम उस व्यक्ति के घर में ठहरने जा रहे हैं, जिसके घर में नियमसार जैसा परमाध्यात्मिक शास्त्र विराजमान है और वह उसका स्वाध्याय भी करता है। उनका नाम अरविन्द भाई था । जब उन्होंने जैना के सम्मेलन में हुए हमारे सभी व्याख्यान सुने तो उनका वात्सल्य शतगुणा वृद्धिंगत हो गया ।

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