Book Title: Aatma hi hai Sharan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 161
________________ 155 धूम क्रमबद्धपर्याय की उनकी बातें सुनकर बालक सोचता है कि जिस नाम से मैं माँ को रोजाना बुलाता हूँ, क्या वह नाम ही नहीं है ? मम्मी कहकर जब भी बुलाता हूँ, माँ हाजिर हो जाती है; फिर भी ये लोग कहते हैं कि मैं माँ का नाम भी नहीं जानता । बालक यह सोच ही रहा था कि पुलिसवाला फिर पूछने लगता है "तेरी माँ मोटी है या पतली, गोरी या काली, लम्बी है या ठिगनी ?" बालक ने तो कभी सोचा भी न था कि माताएँ भी छह प्रकार की होती हैं, उसने तो अपनी माँ को कभी इन रूपों में देखा ही न था । उसने तो माँ का माँपन ही देखा था, रूप-रंग नहीं, कद भी नहीं । वह कैसे बताये कि उसकी माँ गोरी या काली, लम्बी या ठिगनी, मोटी या पतली है ? यह तो सापेक्ष स्थितियाँ हैं । दूसरों से तुलना करने पर ही गोरा या काला कहा जा सकता है, लम्बा या ठिगना कहा जा सकता है, मोटा या पतला कहा जा सकता है । मैं आपसे ही पूछता हूँ कि मैं गोरा हूँ या काला, लम्बा हूँ या ठिगना, मोटा हूँ या पतला ? - मैं तो जैसा हूँ वैसा ही हूँ, न गोरा हूँ न काला हूँ, न लम्बा हूँ न ठिगना हूँ और न मोटा ही हूँ न पतला ही । मेरी बगल में एक अंग्रेज को खड़ा कर दें तो उसकी अपेक्षा मुझे काला कहा जा सकता है, किसी ठिगने आदमी को खड़ा कर दो तो लम्बा कहा जा सकता है और मुझसे लम्बे आदमी को खड़ा कर दो तो ठिगना भी कहा जा सकता है । इसीप्रकार किसी मोटे आदमी को खड़ा कर दो तो मुझे पतला कहा जा सकता है और मुझसे भी पतले आदमी को खड़ा कर दो तो मोटा भी कहा जा सकता है ।

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