Book Title: Aatma hi hai Sharan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 191
________________ आत्मा ही है शरण की पहली ही पंक्ति में पंचपरमेष्ठी का स्मरण किया गया है । हमारे सर्वाधिक प्रिय महामंत्र णमोकार मंत्र में भी पंचपरमेष्ठी को ही नमस्कार किया है । 185 णमोकार महामंत्र में ऐसी क्या विशेषता है कि जिसके कारण प्रत्येक जैनी प्रतिदिन प्रातः काल इसे एक सौ आठ बार नहीं तो कम से कम नौ बार तो बोलता ही है । संपूर्ण जैनसमाज में समान रूप से मान्य यह महामंत्र प्रत्येक जैनी को संकटकाल में तो याद आता ही है, प्रत्येक शुभकार्य के आरम्भ में भी इसका स्मरण किया जाता है । प्रत्येक पालक अपने बालकों को दो-तीन वर्ष की अवस्था में ही इस महामंत्र को सिखा देता है । इसप्रकार यह जैन समाज के बच्चे-बच्चे को याद है । इसके अर्थ पर जब हम विचार करते हैं तो एक बात अत्यन्त स्पष्ट रूप से ज्ञात होती है कि इसमें पंचपरमेष्ठी को नमस्कार करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कहा गया है । णमोकार महामंत्र का सीधा-सादा अर्थ इसप्रकार है "अरहंतों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो और लोक के सर्वसाधुओं को नमस्कार हो ।" -: - ऐसा होने पर भी इसकी इतनी लोकप्रियता क्यों है ? गम्भीरता से विचार करने पर एक बात अत्यन्त स्पष्टरूप से ज्ञात होती है कि इसमें किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार नहीं किया गया है, अपितु उन सभी महान आत्माओं को स्मरण किया गया है, जिन्होंने निज भगवान आत्मा की आराधना कर पंचपरमेष्ठी पद प्राप्त किया है, कर रहे हैं या भविष्य में करेंगे । व्यक्तिविशेष की महिमा से सम्प्रदाय पनपते हैं और गुणों की महिमा से धर्म की वृद्धि होती है । इसीलिए तो हमारे यहाँ कहा गया है —

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