Book Title: Aatma hi hai Sharan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 185
________________ 179 आत्मा ही है शरण श्वेताम्बर प्रतिमायें हैं । यहाँ आरंभिक तीन-चार व्याख्यान तो कुन्दकुन्दशतक की गाथाओं पर ही हुए । उसके बाद समयसार की गाथाओं पर भी तीन-चार व्याख्यान हुए, प्रश्नोत्तर भी खूब हुए । १९ जून, १९९० को रालेइध पहुंचे, जहाँ चार दिन ठहरे । यद्यपि ये दिन अवकाश के दिन नहीं थे, सभी कार्यालय खुले थे; तथापि यहाँ प्रतिदिन चार-चार घंटे कार्यक्रम चलते थे । अधिकांश मुमुक्षु भाइयों ने छुट्टी ले ली थी । डॉ. बसंत दोशी ने तो अपना दवाखाना पूरे दिनों को बंद ही कर दिया था । प्रवीणभाई भी घटे दो घंटे को ही ऑफिस जाते थे । डॉ. दोशी को अभी दो-एक वर्ष पूर्व ही रुचि जागृत हुई है, पर उन्हें आध्यात्मिक ग्रन्थों के स्वाध्याय की इतनी तीव्र रुचि है कि उन्होंने अल्पकाल में ही अच्छा अभ्यास कर लिया है । कार चलाते समय भी वे चर्चा में इतने मग्न हो जाते थे कि एक दिन तो गाड़ी का एक्सीडेन्ट ही हो गया था । उसके बाद मैंने गाड़ी में चर्चा करने से इंकार कर दिया । गाड़ी में चलते समय हम कुन्दकुन्दशतक की कैसेट चला देते थे कि जिससे सबको तत्त्व की बात भी सुनने को मिलती रहे और अनावश्यक बात भी न हो। यहाँ डॉ. बसंत दोशी एवं प्रवीणभाई आदि समयसारादि ग्रन्थों का नित्य स्वाध्याय करते हैं । उन्होंने समयसार का तीन बार आद्योपान्त स्वाध्याय कर लिया है । समयसार में स्थान-स्थान पर निशान लगा रखे थे, सूची में भी निशान लगा रखे थे । जिन-जिन प्रकरणों को स्पष्टीकरण की उन्हें आवश्यकता प्रतीत हुई थी, सभी को चिह्नित कर रखा था । उन्होंने अपने सभी प्रश्नों का समाधान प्राप्त किया तथा आवश्यक प्रकरणों पर प्रवचन कराये। हमें उनकी जिज्ञासा देखकर और गंभीर विषयों पर चर्चा करके बहुत आनन्द आया। कुन्दकुन्दशतक की गाथाओं के अतिरिक्त समयसार गाथा १४ एवं अप्रतिक्रमण भी विष है आदि प्रकरणों पर अत्यन्त मार्मिक प्रवचन हुए ।

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