Book Title: Aagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1375
________________ आगम “उत्तराध्ययनानि"- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३६], मूलं [-1 / गाथा ||६९|| नियुक्ति: [५५६...], भाष्यं [१५...] (४३) प्रत सूत्राक [६९] उत्तराध्य. माह-'तेषाम्' इति पृथिव्यादीनां भेदान्' विकल्पान् 'शृणुत' आकर्णयत 'मे' मम कथयत इति शेष इति सूत्रार्थः ।। जीवाजीव 'यथोद्देशं निर्देश' इतिन्यायतः पृथिवीभेदानाहवृहद्वृत्तिः | दुविहा पुढविजीवा उ, सुहमा बायरा तहा । पजत्तमप्पजत्ता, एवमेव दुहा पुणो ॥ ७० ॥ यायरा जे | विभक्ति. ॥६८८॥ पजत्ता, दुविहा ते वियाहिया । सहा खरा य बोद्धव्वा, सण्हा सत्तविहा तहिं ॥७१ ॥ किण्हा नीला या रुहिरा य, हालिदा सुकिला तहा । पंडपणगमट्टिया, खरा छत्तीसई विहा ।। ७२ ॥ पुढेवी य सकरा वालुया सय उवले सिलो य लोणूसे । अयतयतंबसीसंगरुपसुवन्ने य वैहरे य॥७३॥ हरियाले हिंगुलए मैणोसि-1 लासासगंजणेपाले । अभपडलऽभवालुये वायरकाए मणिविहाणा ॥७४ ॥ गोमिजऐ य कर्यगे अके फलिहे प लोहियखे य । मरगयमसारगैल्ले भुयमोयन इंदैनीले य ॥७५ ॥ चंदणगेरुयहंसगम्भ पुलऐ सोद गंधिर य पोद्धव्ये । चंदप्पभवेलिए जैलकते संरकते य ॥७॥ 'द्विविधाः' द्विभेदाः पृथिवीजीवाः 'तुः प्राग्वत् 'सूक्ष्माः' सूक्ष्मनामकर्मोदयाद् 'बादराः' बादरनामकर्मोदयात् , तथा 'पजत्तमपज्जत्त'त्ति तत्र 'पर्याप्ताः' आहारशरीरेन्द्रियोच्छासवानोऽभिनिवृत्तिहेतुस्तथाविधदलिकं P६८८॥ पर्याप्तिः, यत उक्तम्-"आहारसरीरेंदियउस्सासवओमणोऽभिणिवत्ती। होइ जओ दलियाओ करणं पर सा उप आहारशरीरेन्द्रियोच्यासवचोमनोऽभिनिर्वृत्तिः । भवति यतो दलिकात् करणं प्रति सैव पर्याप्तिः ॥१॥ दीप अनुक्रम [१५३३] JABERatinintamational मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति: ~1374~

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