Book Title: Aagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३६], मूलं [-]/ गाथा ||१३५-१४३|| नियुक्ति : [५५६...], भाष्यं [१५...]
(४३)
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प्रत
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सूत्रांक [१३५
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-१४३]
तयः पिपीलिका:-कीटिकाः गुंमी-शतपदी, एवमन्येऽपि यथासम्प्रदाय वाच्याः, एकोनपञ्चाशदहोरात्राण्यापुरस्थितिरिति सूत्रनवकार्थः ॥ चतुरिन्द्रियवक्तव्यतामाह| चारिदिया उजे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपज्जत्सा, तेर्सि भेए सुणेह मे ॥ १४४ ॥ अंधिया
पुत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीडपयंगे य, डिंकणे कुंकणे तहा ॥१४५॥ कुकडे सिंगिरीविडीय, नंदावते य विच्छिए । होले भिगिरिडिओ, विरिली अच्छिवेहए ॥ १४६ ॥ अच्छिरे माहले अच्छि
रोडए], विचित्ते चित्तपत्तए । ओहिंजलिया जलकारी, यनीया तंबगाइ या ॥१४७॥ इह चरिंदिया एए,
गहा एवमायओ। लोगस्स एगदेसंमि, ते सव्वे परिकित्तिया ॥१४८॥ संतई पपणाईया, अपज्जवसियावि / दाय। ठिई पडच साईया, सपञ्जवसियावि य ॥१४९॥ छच्चेव य मासाऊ, उकोसेण वियाहिया । चरिंदिय,
आउठिई, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ।। १५० ॥ संखिजकालमुक्कोसं, अंतोमुहसं जहन्नयं । चारिदियकायठिई, तं: कार्य तु अमुंचओ ॥१५१॥ अर्णतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजमि सए काए, अंतरेयं वियाहियं । द॥१५२॥ एएसि वन्नओ चेच, गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १५३॥ | चरिदिएत्यादि सूत्रदशकम् , इदमपि तथैव, चतुरिन्द्रियामिलाप एव विशेषः । एतद्भेदाश्च केचिदप्रतीता एवान्ये तु तत्तद्देशप्रसिद्धितो विशिष्टसम्प्रदायाचाभिधेयाः, तथा पडेव मासानुत्कृष्टैषां स्थितिरिति सूत्रदशकाः ॥ पञ्चेन्द्रियवक्तव्यतामाह
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दीप अनुक्रम [१६००-१६०८]]
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
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