Book Title: Aagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३६], मूलं [-] / गाथा ||१६९-१९२|| नियुक्ति : [५५६...], भाष्यं [१५...]
(४३)
प्रत
सूत्रांक
[१६९
१९२]
दुविहावि ते भवे तिषिहा, जलयरा धलयरा तहा। खहयरा य योद्धब्वा, तेर्सि भेए सुणेह मे ॥१७०॥ मच्छा काय कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुसमारा य बोद्धव्वा. पंचहा जलयराहिया ॥ १७१ ॥ लोएगदेसे ते सब्चे, न सव्वत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, तेर्सि वुच्छं चउब्विहं ।। १७२ ॥ संतई पप्पडणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपञ्जवसियावि य ॥१७३ ॥ इकाय पुब्चकोडीओ, उक्कोसेण वियाहिया । आउठि जलयराण, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ॥ १७४ ।। पुब्बकोडीपुरतं तु, उक्कोसेण विवाहिया। कायठिई जलयराणं, अंतोमुहत्तं जहन्नपं ॥ १७५ ॥ अणंतकालमुफोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । विजदंमि सए काए, जलयराणं तु अंतरं ॥ १७६ ॥ एएर्सि वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, वि-11 हाणाई सहस्ससो ।। १७७॥ चप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चाउविहा उ, ते में कित्तयओ सुण ॥ १७८ ॥ एगखुरा दुखुरा चेव, गंडीपयसनष्फया । हयमाह गोणमाई, गयमाई सीहमाइणो ॥ १७९ ॥ भुओरगपरिसप्पा, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाईया, इकिका गहा भये
॥१८॥ लोएगदेसे ते सव्वे, न सब्बत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं बुच्छं चम्विहं ॥ १८१॥ दि संतई पप्पणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पहुच साईया, सपजवसियाचि य॥ १८२॥ पलिओचमा उ| IM तिनि उ, उक्कोसण वियाहिया । आउठिई थलयराणं, अंतोमहतं जहन्नयं ॥१८३ ॥ पलिओवमा उ तिन्नि
उ, उक्कोसेणं वियाहिया । पुब्धकोडीपुहुत्तं तु, अंतोमुहुतं जहन्नयं ॥१८४ ॥ कापठिई थलयराणं, अंतरं
दीप अनुक्रम [१६३४-१६५७]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
~ 1393~

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