Book Title: Aagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1402
________________ आगम “उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३६], मूलं [--] / गाथा ||२०३|| नियुक्ति: [५५६...], भाष्यं [१५...] (४३) प्रत सूत्रांक [२०३] 'पञ्चधा' पञ्चप्रकाराः 'जोइसिय'त्तिज्योतिष्णु-विमानेषु भवा ज्योतिष्का ज्योतीष्येव वा ज्योतिष्काः, द्विविधा पैमानि-1 कास्तथेति सूत्रार्थः ॥ एतानेव च नाममाहमाह| असुरा नागमुवण्णा, विज्जू अग्गी अ आहिया । दीवोदही दिसा वाया, धणिया भवणवासिणो| ॥२०४ ॥ पिसाय भूया जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा । महोरगा य गंधब्वा अहविहा वाणहै मंतरा ॥ २०५ ॥ चंदा सूरा य नक्षत्ता, गहा तारागणा तहा । दिसाविचारिणो चेच, पंचहा। जोइसालया ।। २०६॥ वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते पकित्तिया । कप्पोवगा य बोद्धव्वा, कप्पाईया तहेव य॥२०७॥ कप्पोवगा बारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा । सणंकुमारमाहिंदा, बंभलोगा य लंतगा ॥ २०८ ॥ महासुका सहस्सारा, आणया पाणया तहा। आरणा अञ्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा ॥२०९।। कप्पाइया उजे देवा, दुविहा ते वियाहिया । गेविजगाणुत्तरा चेव, गेविजा नवविहातहिं ॥२१०॥हिहिमा हहिहिमा चेव, हिडिमा मजिसमा तहा । हिडिमा उधरिमा चेच, मजिसमा हिडिमा तहा ॥ २११ ॥ मजिसमा मज्झिमा चेव, मज्झिमा उवरिमा तहा । उवरिमाहिडिमा चेव, उवरिमा मज्झिमा तहा ॥ २१२॥ उपरिमा |उवरिमा चेव, इइ गेविज्जगा सुरा । विजया वेजयंता य, जयंता अप्पराजिया ॥२१३॥ सव्वट्ठसिद्धगा चेव, झापंचहाणुत्तरा सुरा । इह चेमाणिया एए, णेगहा एबमायओ॥ २१४ ॥ दीप अनुक्रम [१६६८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति: ~1401~

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