Book Title: Aagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३६], मूलं [-]/ गाथा ||१२६-१३४|| नियुक्ति : [५५६...], भाष्यं [१५...]
(४३)
प्रत
सूत्रांक
[१२६१३४]
उत्तराध्य. सम्भयाः 'अलसाः' प्रतीताः 'मातृवाहकाः' ये काष्ठशकलानि समोभयाग्रतया संघभन्ति, वास्याकारमुखा पासी- जमाती
मुखाः, 'सिप्पिय'त्ति प्राकृतत्वात् शुक्तयः 'शङ्खाः' प्रतीताः 'शङ्खनकाः' तदाकृतय एवात्यन्तलघवो जीवाः 'वरा-3 बृहद्वृत्तिः
टकाः' कपर्दकाः 'जलौकसः' दुष्टरक्ताकर्षिण्यः चन्दनका-अक्षाः, शेपास्तु यथासम्प्रदायं वाच्याः, वर्षाणि द्वादशैव विभक्ति. ॥६९५|| विति सूत्रनवकार्थः ॥ त्रीन्द्रियवक्तव्यतामाह
तेइंदिया य जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेर्सि भेए सुणेह मे ॥ १३५॥ कुंथुपिवीलिउइंसा, उक्कलुहिया तहा। तणहारा कट्ठहारा य, मालूगा पत्तहारगा ॥ १३६॥ कप्पासिऽहिमिंजा य |र्तिदुगा तउसर्मिजगा । सदावरी य गुम्मी य, बोद्धव्वा इंदगाइ य ॥ १३७ ॥ इंदगोवसमाइया, गहा एव-12
मायओ। लोएगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया ॥ १३८॥ संतई पपडणाईया, अपज्जवसियावि य ।। दाठिई पडुच साईया, सपज्जवसियावि य ॥ १३९ ॥ एगूणवन्नऽहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया | तेइंदिय आउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १४० ॥ संखिजकालमुक्कोसा, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । तेइंदियकायठिई, तं कायं तु
अमुंचओ॥१४१॥ अर्णतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । तेइंदियजीचाणं, अंतरेयं वियाहियं ॥१४२।। एएसिं| टावन्नओ चेव, गंधो रसफासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥१४३ ॥
| ॥६९५॥ । तेंदिएत्यादि सूत्रनवकम् , एतदपि पूर्ववत् , नवरं त्रीन्द्रियोचारणं विशेषः । तथा कुन्थवः-अनुद्धरिप्रभू-|
दीप अनुक्रम [१५९१-१५९९]
Thacha
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
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