Book Title: Aagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1388
________________ आगम “उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३६], मूलं [-]/ गाथा ||११७-१२४|| नियुक्ति : [५५६...], भाष्यं [१५...] (४३) प्रत सूत्रांक [११७१२४] एगेंदिया भावें दियं पडुच एगेन्दियावि जीवा बेदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिय"त्ति, एवं शेषेष्वपि, तथैव 'तेइंदिय'त्ति त्रीन्द्रियाः-येषां वे ते एव तृतीयं ब्राणं, 'चउरी'त्ति प्रक्रमाचतुरिन्द्रियाः येषां त्रीण्युक्तरूपाणि चतुर्थं चक्षुः, पञ्चेन्द्रियाश्चैव-येपामेतान्येव चत्वारि पञ्चमं श्रोत्रमिति सूत्रार्थः ॥ सत्र तावद् द्वीन्द्रियवक्तव्यतां प्रतिपिपादयिपुरिदमाह बेइंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १२६ ॥ किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माहवाहया । वासीमुहा य सिप्पीया, संखा संखणगा तहा ॥१२७ ।। पल्लोयाणु- दिल्लपा चेव, तहेव य वराडगा । जलूगा जालगा चेव, चंदणा य तहेव प॥१२८॥ इति बेइंदिया एए. गहा एवमायओ। लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १२९ ।। संतई पप्पडणाईया, अपज्जब४/सियाचि य । ठिई पडच्च साईया, सपज्जवसियावि य॥१३० ॥ वासाई वारसेव उ, उकोसेण वियाहिया। बेईदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १३१ संखिजकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियकायठिई, सतं कार्य तु अमुंचओ॥ १३२॥ अणंतकालमुकोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । इंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं । 18॥१३३ ॥ एएर्सि वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १३४॥ बेइंदिया इत्यादि सूत्रनवकम् , इदमपि प्रायस्तथैव, नवरं द्वीन्द्रियाभिलापः कर्त्तव्यः, तथा 'कमयः' अशुच्यादि दीप अनुक्रम [१५८१-१५८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति: ~1387~

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