Book Title: Aagam 33 MARAN SAMAADHI Moolam evam Chhaayaa
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 7
________________ आगम (३३) “मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया) --- ------- मूलं [१०]----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३३], प्रकीर्णकसूत्र - [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया -% 0 -50 प्रत सूत्रांक -0-50- 4 निसन्नओ भणइ । सुण दाणि धम्मवच्छल ! मरणसमाहि समासेणं ॥ १०॥ १२४५ ॥ सुण जह पच्छिमकाले | पच्छिमतित्थयरदेसियमुपारं । पच्छा निच्छियपत्थं उविति अम्भुन्नुयं मरणं ॥ ११ ॥१२४६ ॥ पवनाई सर्व काऊणालोयणं च सुविसुद्धं । दसणनाणचरित्ते निस्सल्लो विहर चिरकालं ॥ १२ ॥ १२४७ ॥ आउधेयसम सी तिगिच्छिा जह विसारओ विजो । रोआर्यकागहिओ सो निरुयं आउरं कुणइ ॥ १३ ॥ १२४८ ॥ एवं | पयपणसुपसारपारगो सो चरित्तसुद्धीए । पापच्छित्तविहिन् तं अणगारं विसोहे। ॥ १४ ॥ १२४० ।। भणइ |प तिविहा भणिया सुविहिप! आराहणा जिर्णिदेहिं । सम्मत्तम्मि य पढमा नाणचरित्तेहिं दो अण्णा ॥१५॥ १२५० ॥ सहहगा पसिषगा रोयगा जे य वीरवयणस्स । सम्मत्तमणुसरंता सणाराहगा हुंति 3 ॥१६॥ १२५१ ॥ संसारसमावणे य छविहे मुक्खमस्सिए चेव । गा दुविहे जीवे आणाए सरहे निचं ||१०|| % दीप अनुक्रम 455-50-550-55 *50 मरणसमाधि समासेन ।। १० ।। शृणु यथा पश्चिमकाले पश्चिमतीर्थकरदेशितमुदारम् । पश्चात् निश्चयपथ्यं उपयान्यभ्युद्यतं मरण (तथा| वक्ष्ये) ॥ ११ ॥ पत्रज्यादि सर्व कृत्वाऽऽलोचनां च सुविशुद्धां । दर्शनज्ञानधारित्रेषु निश्शल्यो विहर चिरकालम् ।। १२ । समाषायुर्वेदचिकित्सायां विशारदश्च यथा वैद्यः । रोगातकागृहीतः स नीरुजमातुरं करोति ॥१३॥ एवं प्रवचनभुतसारपारगः स चारित्रशुद्धया । प्रायवित्तविधिहस्तमनगार विशोधयति ॥१४॥ भणति च त्रिविधा भणिता सुविहित ! आराधना जिनेन्द्रः । सम्यक् च प्रथमा जान चारिवयोर्दै अन्ये ॥१५।। प्रधानाः प्रत्यायका रोचका ये च बीरवचनस्य । सम्यक्त्वमनुसरन्तो दर्शने आराधका भवन्ति ॥१६|| संसारस-16 प.स.१७ Janludminimtin repareitrory.in अथ आराधना एवं मरणस्य स्वरुपम् कथयते ~6~

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